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________________ में न लगा रहूँ तो संसार न चले। इसलिए मैं डाक्टरों, वकीलों आदि सफेदपोशों से भी कहता हूँ कि आप चर्खा चलाएँ।' इससे देशवासियों को उदाहरण मिलेगा।26 गांधी का यह आह्वान सुन अनेक प्रबुद्ध जन कर्म को अपना धर्म मानने लगे। स्वयं ने भी कठोर परिश्रम अपनाया जिसकी मिसाल है एक दिन में 20 घंटे तक कुछ न कुछ कर्म करना। 'ट्रस्टी' शब्द का अर्थ गीता अध्ययन की बदौलत अच्छी तरह समझ में आया, ऐसा गांधी का कहना था। 'ट्रस्टी' यों तो करोड़ों की सम्पत्ति रखते हैं, पर उसकी एक पाई पर उनका अधिकार नहीं होता। इसी तरह मुमुक्षु को अपना आचरण रखना चाहिए-यह पाठ मैंने गीता से सीखा। अपरिग्रही होने के लिए, समभाव रखने के लिए, हेतु का और हृदय का परिवर्तन आवश्यक है। यह बात मुझे दीपक की तरह स्पष्ट दिखाई देने लगी। केवल सैद्धांतिक पक्ष ही उनकी प्रेरणा का केन्द्र नहीं बना अपितु उन्होंने प्रायोगिक स्तर पर भी इसे अपनाया। उन्होंने लिखा-मैंने बम्बई में एक बीमा एजेंट के समझाने में आकर अपना दस हजार का बीमा करा लिया था। जब ये विचार मेरे मनमें उठे, तो तुरंत रेवाशंकर भाई को बम्बई लिखा कि बीमा की पॉलिसी रद्द कर दी जाय। कुछ रुपया वापिस मिल जाय तो ठीक, नहीं तो खेर। बाल-बच्चों और गृहिणी की रक्षा वह ईश्वर करेगा, जिसने उनको और हमको पैदा किया है। यह मेरे उस पत्र का आशय था। तत्वतः गांधी की गीता समझ रचनात्मक बनीं। गीता की भूमिका उनके लिए बेजोड़ थी। इसकी झलक ‘मार्गदर्शिका', 'आचरण-संहिता', 'धर्मकोश', 'आत्मिक प्रेरणा का स्रोत', और 'संकट में सच्चा मित्र और सहायक' इत्यादि अभिधाओं में मिलती है। वे कहते-'जब मुझे प्रकाश की एक किरण भी कहीं दिखाई नहीं देती, मैं उसे भगवद्गीता में खोजता हूँ और उसके किसी श्लोक में निहित आशा का संदेश मेरे भारी-से-भारी दुःख को चुटकियाँ बजाते दूर कर देता है। अनंत दुःख, कष्ट और आपदाओं से भरे अपने इस जीवन में जो स्थिर और अविचलित रह सका हूँ उसका सारा श्रेय भगवद्गीता को ही है।' जीवन को भक्ति और आंनद पूर्वक जीने की कला उन्हें इस महाग्रंथ से मिली। जीवन के प्रति सहज निस्पृह भाव का उदय भी शायद इसकी प्रेरणा से संभव बना था। उनकी मृत्यु की घटना इसका प्रबल प्रमाण है। मृत्यु का पहला संकेत 20 जनवरी की शाम को बिड़ला भवन में अपनी प्रार्थना सभा को संबोधित करते समय तब मिला जब उन पर फेंका गया बम कुछ दूरी पर गिरा-विस्फोट हुआ पर पूर्वक भाषण देते रहे। दूसरे दिन निरुद्वेग रहने पर बधाईयां दी गयी। तब उन्होंने कहा- 'सच्ची बधाई के योग्य तो मैं तब हूँगा जब विस्फोट का शिकार होकर भी मुस्कराता रहूँ और हमला करने वाले के प्रति मेरे मन में जरा भी विद्वेष न हो।' सहज भाव से बम फेंकने वाले मदनलाल को 'गुमराह' कह कर क्षमा कर दिया। प्रार्थना सभा में आने वालों की तलाशी ली जाये यह बापू नहीं चाहते थे। उन्होंने स्पष्ट कहा-'अगर मरना ही बदा है तो मुझे प्रार्थना सभा में ही मरने दो। और यह ख्याल बिलकुल गलत है कि आप मेरी रक्षा कर सकते हैं। उनका यह कथन सच निकला और वह । प्रार्थना स्थल का मार्ग गांधी की अंतिम साँसों का साक्षी बना। 'हे राम...हे राम..हे राम।' कहते हुए गीता का अमर पुजारी, आजादी का प्रप्टा निष्प्राण हो गया। - विराट् भाव से गांधी ने गीता को पढ़ा, जीवन में गढ़ा और अंतिम साँसों तक कसौटी पर कसा ऐसा कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। सांस्कृतिक मूल्य / 139
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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