SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु बनीं।' कस्तूरबा के प्रति गांधी के हृदय में ऊँचा स्थान था। इससे यह भी स्पष्ट है कि वे अपनी पत्नी को अहिंसा का सबक सिखाने वाली प्रेरिका भी मानते थे। भारतीय संस्कृति भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों में गांधी को पलने का सौभाग्य मिला। इस महान् संस्कृति के बदौलत ही उनमें दैविक गुणों का संचार हुआ। ये गुण ही प्रमुख रूप में आस्था एवं जीवन की सफलता के पर्याय बनें। सजीदगी, सहानुभूति, प्रेम, करुणा, मैत्री, अभय, सत् संस्कारों का बीजारोपण हिंदू संस्कृति के अंग हैं। 'प्राणी मात्र एक है, सभी जीव ईश्वर के अवतंस है'-हिंदू धर्म के इस प्रचलित विश्वास ने अहिंसा में उनकी आस्था को दृढ़ किया। हिंदू धर्म का मूल तत्त्व है : सत्य-स्वरूप ईश्वर की परमसत्ता में अडिग आस्था। जीव-मात्र के साथ एकत्व का बोध और ईश्वर साक्षात्कार के लिए प्रेम अर्थात् अहिंसा के मार्ग का अवलंबन। सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांतों को स्वीकार करता है और मोक्ष को अंतिम तथा श्रेष्ठ पुरुषार्थ समझता है। इस धर्म के संबंध में गांधी ने कहा था हिंदू धर्म, जिस रूप में मैं उसे समझ सका हूं, मेरी आस्था को संतुष्ट और परिपूर्ण करने वाला है। क्योंकि हिंदू धर्म की यही तो खूबी है कि 'इसमें संसार के सभी पैगंबरों की पूजा के लिए स्थान है।....यह अपने-अपने विश्वास या मजहब के अनुसार ईश्वर की पूजा का सबको अधिकार देता है; इसीलिए उसका किसी भी धर्म से कोई विरोध नहीं है। इस प्रकार की विराट् भावना से अनुस्यूत हिंदू धर्म गांधी की एक मात्र आस्था का केंद्र था। उनके शब्दों में-मैंने बचपन से हिंदू धर्म का अभ्यास किया है। जब मैं छोटा था तो भूत-प्रेतों के डर से बचने के लिए मेरी दाई मुझे रामनाम लेने को कहती थी। बाद में ईसाईयों, मुसलमानों और दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों के संपर्क में आया और अन्य धर्मों का पर्याप्त अध्ययन करने के बाद भी मैं हिंदू धर्म को अपनाये रहा। मेरा विश्वास है कि परमात्मा मुझे उस धर्म की रक्षा करने का साधन बनायेगा, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, जिसका पालन करता हूँ और जिसका मैंने अभ्यास किया है। 5 आस्थानुरूप उन्होंने इस धर्म का स्थिरता से पालन किया और समय-समय पर प्रकट किया कि मेरा जीवन अहिंसा-धर्म द्वारा भारत की सेवा के लिए समर्पित है, जिसे मैं हिन्दू धर्म की बुनियाद मानता हूँ। । स्वयं को हिंदू क्यों मानते इसका स्पष्टीकरण था-मैंने कई दफा अपने को 'सनातनी हिन्दू' कहा है। 'सनातन शब्द का प्रयोग मैंने उसके स्वाभाविक अर्थ में किया है। मैं नीचे लिखे कारणों से अपने को 'सनातनी हिन्दू' कहता हूँ. मैं वेदों को, उपनिषदों को, पुराणों को और उन सब वस्तुओं को मानता हूँ, जो हिन्दू शास्त्र के नाम से विख्यात है। इसलिए मैं अवतारों और पुनर्जन्म को भी मानता हूँ। . मैं वर्णाश्रम-धर्म को मानता हूँ, परन्तु अपनी समझ के अनुसार ठीक वैदिक अर्थ में, आजकल के प्रचलित और अपूर्ण अर्थ में नहीं। . मैं गौरक्षा को मानता हूँ परन्तु वर्तमान प्रचलित अर्थ से बहुत व्यापक अर्थ में-(गौरक्षा का अर्थ है-ईश्वर की संपूर्ण मूक सृष्टि की रक्षा।) . मैं मूर्ति-पूजा में अविश्वास नहीं करता।" संस्कारों की मूल इकाई / 133
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy