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हड़प जाना, मृषा उपदेश देना, बहकाना, भ्रामक वचन बोलना, उत्तेजनात्मक भाषण देना, जनता को बर्गलाना, हानिकारक वस्तु को गुण युक्त लाभकारी वस्तु कहकर बेचना, झूठे विज्ञापन देना, वादे से मुकर जाना, स्वार्थ के लिए अपने वचन को पलट देना आदि मिथ्या भाव आना भी मृषावाद है। ___ (३) अदत्तादान- चोरी करना, दूसरों की वस्तु का अपहरण करना व बलात् अधिकार जमा लेना, कम तोलना-मापना, अच्छी वस्तु दिखाकर बुरी वस्तु देना, वस्तु में मिलावट करना, लाटरी-चिट-फंड जुआ आदि से लोगों का धन हरण करना, धोखाधड़ी करना, अधिक श्रम करवाकर कम पारिश्रमिक देना, शोषण करना, जेब काटना, डाका डालना, लूटपाट करना, अच्छा नमूना दिखाकर नकली वस्तु देना, पुरस्कार का लोभ देकर फंसाना, साहित्यिक चोरी करना आदि चोरी के अनेक रूप हैं। मुक्ति, शांति, स्वाधीनता, प्रसन्नता आदि अपने गुणों का अपहरण होना भी अदत्तादान है। इससे अविश्वास की उत्पति होती है जो भारी हानि है।
() मैथुन- काम-विकार में प्रवृत्त होना, संभोग करना, मैथुन है। मैथुन के अनेक प्रकार हैं यथा रति क्रीड़ा करना, वेश्यागमन करना, परस्त्री गमन करना, व्यभिचार सेवन करना, बलात्कार करना, समलिंगी के साथ संभोग करना, अश्रील फिल्म देखना, तीव्र नशीली वस्तुओं का सेवन कर कामोत्तेजन करना, नग्न नृत्य देखना आदि मैथुन के अनेक रूप हैं। आत्म-भाव भूलना, निज स्वरूप की विस्मृति होना और पर से संग व भोग करना भी मैथुन है। इससे आकुलता उद्वेग उत्पन्न होता है जिससे चित्त की शांति व समता भंग होती है।
(५) परिग्रह- वस्तुओं का संग्रह करना परिग्रह है। परिग्रह के असंख्य रूप हैं यथा- भूमि, भवन व सिक्कों का संग्रह, वस्त्रों का संग्रह, मूर्तियों का संग्रह, पुरानी वस्तुओं का संग्रह, भोग-उपभोग की वस्तुओं का संग्रह, पशुओं का संग्रह, खाद्य वस्तुओं का संग्रह, वाहनों का संग्रह आदि, यह द्रव्य परिग्रह है। भोग सामग्री के प्रति ममता होना भाव परिग्रह है। इससे मूर्छाभाव-जड़ता, पराधीनता आदि दोषों व दुःखों की उत्पत्ति होती है। ___(६) क्रोध- क्षुब्ध होना क्रोध है। अपनी मन चाही स्थिति नहीं होने पर अथवा अनचाही होने पर गुस्सा करना, खिन्न होना, गाली देना, बुरा-भला कहना, गुस्से में कर्त्तव्य अकर्त्तव्य का भान भूल जाना, गुस्से से होठों का फड़कना, आँखें लाल होना आदि क्रोध के अनेक रूप हैं।
पुण्य-पाप तत्त्व
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