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जैन दर्शन में प्रकृति के मूलभूत तत्त्वों के विषय में गहन चिन्तन किया गया है। पारम्परिक साहित्य में तत्त्वों के आध्यात्मिक पहलुओं की चर्चा पर ही अधिक जोर दिया गया है। जैन दर्शन में मानव जीवन की सार्थकता मुक्ति प्राप्ति को बताया है। मुक्ति का अर्थ बन्धनरहित होना अथवा स्वाधीन होना है। जैन धर्म में मुक्ति प्राप्ति या मोक्ष साधना की दृष्टि से नवतत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं। आगमानुसार तत्त्वों का विवेचन संक्षिप्त, सरल व सुलभ भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
श्री कन्हैयालाल लोढ़ा सा. द्वारा पूर्व में नवतत्त्वों पर जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध एवं मोक्ष सभी पर आगमिक,
वैज्ञानिक व्याख्या सहित विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में जैन दर्शन में भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त सभी तत्त्वों को सार रूप में एकत्रित करने का प्रयास किया है, ताकि जो पाठक संक्षिप्त और कम समय में किसी तत्त्व को जानना चाहे तो इस पुस्तक के माध्यम से जान सकते हैं।
प्राकृत भारती अकादमी द्वारा पूर्व में आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । लेखक श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वान हैं। आप कर्म सिद्धान्त के श्रेष्ठतम विद्वान हैं तथा एक उच्च कोटि के साधक हैं।
हमें आशा है कि लेखक की यह 'जैनतत्त्व सार' पुस्तक भी सुधी पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। प्रकाशन से जुड़े सभी सदस्यों को धन्यवाद!
देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर