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________________ मुक्ति का स्वरूप एवं सोपान है। जिसे जरा-मरण से रहित होना है, अजरत्व अमरत्व को प्राप्त करना है, पूर्ण ज्ञानी बनना है, सदा के लिए पूर्ण सुखी होना है, निर्भय और निर्मल होना है, पूर्णता का वरण करना है, अभाव को सदा के लिए समाप्त करना है, गुणों की सर्वोच्चता से सम्पन्न होना है, हीनता-महानता के भेद से दूर होना है, वह मुक्ति के पथ पर चरण बढ़ाता है। वह अनन्त औदार्य, अनन्त सम्पन्नता, अनन्त सौन्दर्य, अनन्त माधुर्य एवं अनन्त सामर्थ्य से युक्त हो सकता है। जीवनकाल में उसका चारित्र सर्वोत्कृष्ट होता है तथा मुक्ति प्राप्ति के पश्चात् पुनः कभी दुःख से आक्रान्त नहीं होता। वह सातावेदनीय से मिलने वाले सुख का आकांक्षी नहीं होता, अपितु कर्ममुक्त होने के कारण सदैव अव्याबाध सुख से सम्पन्न होता है। आदरणीय श्री लोढ़ा साहब की अध्यात्म-साधनापरक अनेक पुस्तकें प्रकाश में आ चुकी हैं, उसी शृंखला में मोक्षतत्त्व पुस्तक पाठकों को अर्पित की जा रही है। एकाग्रता एवं अनाग्रह बुद्धि से पढ़ने पर यह पुस्तक निश्चित ही साधनों एवं विद्वानों का सम्यक् मार्गदर्शन कर सकेगी। 000 मोक्ष तत्त्व [271]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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