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मोक्षमार्ग के सूत्र मुक्ति प्रदायक गाथाओं से आगम पूरा भरा हुआ है। उनमें से कुछ गाथाएँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं:
सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः - तत्त्वार्थ सूत्र १.१ नाणेण जाणइ भावे, सणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ॥ उत्तराः. २८.३५
(मनुष्य) ज्ञान से जीवादि पदार्थों को जानता है, दर्शन से उनका श्रद्धान करता है, चारित्र से (कर्मास्त्रव का) निरोध करता है और तप से विशुद्ध होता है।
संजोअसिद्धीए फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा॥
- समणसुत्तं, २१३ कहा जाता है कि ज्ञान और क्रिया के संयोग से ही फल की प्राप्ति होती है, जैसे कि वन मे पंगु और अन्धे के मिलने पर पारस्परिक सम्प्रयोग से (वन से निकलकर) दोनों नगर में प्रविष्ट हो जाते हैं। एक पहिये से रथ नहीं चलता।
हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ॥- समणसुत्तं, २१२
क्रियाविहीन ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानियों की क्रिया व्यर्थ है। जैसे पंगु व्यक्ति वन मे लगी आग को देखते हुए भी भागने में असमर्थ होने से जल मरता है और अन्धा व्यक्ति दौड़ते हुए भी देखने में असमर्थ होने से जल मरता है।
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥
- उत्तरा. अ. २८.३० सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनन्तानन्द) नहीं होता।
एगओ विरई कुजा, एगओ य पवत्तणं।
मोक्ष तत्त्व
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