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________________ तात्पर्य यह है कि विषय-भोग या असंयम से ही प्रवृत्ति करने की रुचि उत्पन्न होती है। करने में शक्ति क्षय होती है और अन्त में असमर्थता आ जाती है। इसके विपरीत संयम-त्याग-निवृत्ति में असमर्थता की गन्ध भी नहीं है। मानवमात्र करने में सक्षम व समर्थ है। पूर्ण संयमी वीतराग के कर्तृत्व व भोक्तृत्व भाव का अन्त हो जाता है, जिससे करना शेष नहीं रहता है। करना शेष न रहने से असमर्थता का अन्त हो जाता है और अनन्त सामर्थ्य की, अनन्त वीर्य की अभिव्यक्ति हो जाती है। 'करने' से मुक्ति वही पाता है जिसने विषय के सुख-भोग के राग का त्याग कर दिया हो। कारण कि जिसने विषय-सुख का त्याग कर दिया उसे संसार से कुछ भी पाना शेष नहीं रहता है। जिसे कुछ भी पाना शेष नहीं रहता उसे कुछ भोगना शेष नहीं रहता। जिसे भोगना, पाना शेष नहीं रहता उसे कुछ करना भी शेष नहीं रहता है। जिसे भोगना, पाना, करना शेष नहीं रहता, वही पूर्ण समर्थ है, वही अनन्त वीर्यवान है। वीतराग को अनन्त दान के रूप में अनन्त औदार्य या कारुण्य, अनन्त लाभ के रूप में अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त भोग के रूप में अनन्त सौन्दर्य, अनन्त परिभोग के रूप में अनन्त माधुर्य, अनन्त वीर्य के रूप में अनन्त सामर्थ्य, सम्यक्त्व के रूप में स्वानुभूति, अनन्त दर्शन के रूप में अनन्त चिन्मयता (चैतन्य), अनन्त ज्ञान के रूप में सर्वज्ञता एवं अनन्त चारित्र के रूप में अक्षय-अव्याबाध-अनन्त सुख की उपलब्धि होती है। ये नौ उपलब्धियाँ नौ निधियाँ हैं, नौ विभूतियाँ हैं। ये नौ निधियाँ वीतरागपरमात्मा के ईश्वरीय गुण हैं। इन नौ निधियों में से प्रथम पाँच-1. औदार्य, 2. ऐश्वर्य, 3. सौन्दर्य, 4.माधुर्य और 5. सामर्थ्य को हम क्रमशः 1. श्री (श्रेष्ठ), 2. लाभ, 3. शुभ 4. ऋद्धि और 5. सिद्धि रूप उपलब्धियाँ भी कह सकते हैं। ये उपलब्धियाँ अक्षय, अव्याबाध (अन्तरायरहित) एवं अनन्त रूप में होती हैं। अतः इनसे मिलने वाला सुख भी अक्षय, अव्याबाध एवं अनन्त रूप होता है। इस सुख में क्षति-पूर्ति, तृप्ति-अतृप्ति, निवृत्ति-प्रवृत्ति नहीं होती। यह सुख विषयसुख से विलक्षण होता है, जो अनुभवगम्य है। इस सुख का विशेष विवेचन 'अक्षय-अव्याबाध-अनन्त सुख-वैभव' के रूप में आगे किया जा रहा है। मोक्ष : एकान्तसुख उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३२ गा. २ में कहा है कि: एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं॥ मोक्ष तत्त्व [257]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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