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होता है। जो इस सत्य का अनुभव कर लेता है, वह सम्यक् दृष्टि है और जो उस सुख को कामना पूर्ति से मानता है, वह मिथ्यादृष्टि है, क्योंकि उसकी यह मान्यता मिथ्या
कामना पूर्ति में सुख मानने से अनेक नई कामनाएँ पैदा होती हैं, उन कामनाओं की पूर्ति के लिए प्राणी जीवन पर्यन्त दौड़ता रहता है- भ्रमण करता है । परन्तु उसे स्थायी सुख की उपलब्धि एवं संतुष्टि नहीं होती । कामना - उत्पत्ति सुख प्राप्ति के लिए ही होती है। सुख प्राप्ति का प्रयत्न वही करता है, जिसे सुख का अभाव है । अत: कामना उत्पत्ति सुख के अभाव की, नीरसता की सूचक है । कामनाओं की पूर्ति से सुख का अभाव मिटता नहीं है, बल्कि क्षणिक सुख का आभास होता है। यदि कामना पूर्ति से यह सुख का अभाव मिटता होता, तो प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिदिन बीसों कामनाएँ पूरी होती हैं और उनकी पूर्ति में उसे सुख का आभास भी होता है । यदि यह वास्तविक सुख होता, तो अब-तक सभी प्राणी सुखी हो जाते। आज प्रत्येक व्यक्ति के पास में आज के सौ वर्ष पहले के व्यक्ति से सैकड़ों गुना वस्तुएँ बढ़ गई हैं। मधुर संगीत सुनने के सुख के लिए लाखों रुपयों से तैयार किये गए गानों के कैसेट, रेडियो, सुंदर दृश्य देखने के लिए सिनेमा, टेलीविजन, जिह्वा इन्द्रिय के सुख के लिए सैकड़ों प्रकार की मिठाइयाँ, खटाइयाँ, नमकीन, विविध व्यंजन आदि अगणित सुख की सामग्री बढ़ गई है, जिसका वह भोग- उपभोग कर रहा है, परन्तु सुख में अंशमात्र भी वृद्धि नहीं हुई । यदि सुख मिल गया होता, सुख पाना शेष न रहा होता, सुख से तृप्ति व संतुष्टि हो गई होती, तो सुख की कामना उत्पन्न नहीं होती । कारण कि भोग-सामग्री में सुख है ही नहीं । यदि भोग-सामग्री में सुख होता तो सामग्री के विद्यमान रहते सुख भी रहता, परन्तु सामग्री ज्यों की त्यों विद्यमान रहती है और सुख सूख जाता है । सुख प्रतिक्षण क्षीण होकर नीरसता में बदल जाता है। अत: कामना पूर्ति में सुख मानना भयंकर भूल है, घोर मिथ्यात्व है। सुख कामना के अभाव में है, निर्विकल्पता में है । निर्विकल्पता या दर्शन गुण ही चेतना का मुख्य गुण है।
निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति (बोध) का अन्तर
निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति में बहुत अन्तर है। स्थितिरूप निर्विकल्पता अनेक प्रकार से आती है, यथा- 1. निद्रा 2. जड़ता 3. मूर्च्छा 4. भोग्य पदार्थों की अज्ञानता 5. असमर्थता आदि कारण मुख्य हैं। 1. निद्रा से चित्त शांतनिर्विकल्प हो जाता है, ऐसी निर्विकल्पता जनित शान्ति हम सबको निद्रा में
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जैतत्त्व