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भगवन्! गोत्र कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? गौतम! गोत्र कर्म दो प्रकार का है- उच्च गोत्र और नीच गोत्र।
सामान्यतः उत्तम कुल में जन्म लेना उच्च गोत्र और लोकनिंद्य कुल में जन्म लेना नीच गोत्र माना जाता है। परन्तु कौनसा कुल उच्च है और कौनसा कुल नीचा है, इसका कोई निश्चित मानदण्ड नहीं है। काल और क्षेत्र के अनुसार मानदंड में परिवर्तन होता रहता है। वर्ण-व्यवस्था में क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य आदि कलों को उच्च गोत्र माना गया है, परन्तु इन वंशों में भी लोकनिंद्य पुरुषों ने जन्म लिया है और चांडाल, चमार, रैगर आदि कुलों को नीच गोत्र माना गया है, परन्तु इन वंशों में भी महात्मा, साधु-सन्तों, महापुरुषों ने जन्म लिया है तथा साधु सदैव उच्च गोत्र वाला ही होता है, नीच गोत्र वाला नहीं होता है। अत: जाति, वंश एवं वर्ण-व्यवस्था के आधार पर उच्च तथा नीच गोत्र नहीं माना जा सकता। उच्च आचरण को उच्च गोत्र और नीचे आचरण को नीच गोत्र मानना ही अधिक उपयुक्त है।
संताणकमेणागयजीवायरणस्स गोदमिदि सण्णा। उच्चं णीचं चरणं उच्चं णीचं हवे गोदं॥
-गोम्मटसार कर्मकांड, गाथा 13 अर्थात् संतान क्रम से चला आया जो जीव का आचरण है, उसकी गौत्र संज्ञा है। जीव का ऊँचा आचरण उच्च गोत्र है और नीचा आचरण नीच गोत्र है। यहाँ ऊँचे आचरण से आशय अहिंसा, दया, शिष्टता, मृदुता, सरलता, सज्जनता, सहृदयता आदि सद्गुणयुक्त सद्प्रवृत्ति से है और नीच आचरण से आशय अशिष्टता, निर्दयता, क्रूरता, हिंसा, आदि दुर्गुणयुक्त दुर्व्यवहार से है।
जैसाकि गोम्मटसार कर्मकाण्ड में कहा हैण वि मुंडिएण समणो, ण ओंकारेण बंभणो। ण मुणी रण्णवासेणं , कुसचीरेण ण तावसो॥ समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। णाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो॥ कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मणाा होई, सुद्दो हवई कम्मुणा ॥33॥
-उत्तराध्ययन 25.31-33
बंध तत्त्व
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