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________________ गुणश्रेणियों में उत्तरोत्तर असंख्यात गुणे असंख्यात गुणे कर्म दलिकों की गुणश्रेणि निर्जरा होती है। तत्त्वार्थ सूत्र में सयोगी और अयोगी में स्थान पर 'जिन' शब्द का प्रयोग हुआ है। शेष गुणश्रेणियों का उल्लेख यथावत् है सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशम- कोपशान्तमोह क्षपक क्षीणमोहजिनाःक्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः। तत्त्वार्थसूत्र ९/४७) गोम्मटसार जीवकाण्ड में भी इन्हीं गुणश्रेणियों का उल्लेख है। यहाँ यह भी कहा गया है कि ज्यों ज्यों गुणश्रेणि बढ़ती है त्यों त्यों संख्यात गुणा काल कम लगता है। 'निर्जरा' जैन धर्म-दर्शन में मोक्ष की साधना महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। वैदिक परम्परा में यह माना जाता है कि कुत कर्मो को भोगे बिना उनसे छुटकारा नहीं मिलता है। किन्तु जैन-दर्शन में निरूपित निर्जरा तत्त्व इस तथ्य का प्रतिपादन करता है कि कर्मों को उसी रूप में भोगे बिना भी उसका क्षय किया जा सकता है। कर्मों के अनुभाग और स्थिति का घात हो जाने से उन्हें भोगना आवश्यक नहीं होता, मात्र प्रदेशोदय ही भोगा जाता है। आत्म-प्रदेशों से कर्म-पुद्गल का पृथक् होना ही निर्जरा है- 'निर्जरणं निर्जरा, विशरणं परिशटनमित्यर्थः।" इन कर्म-पुद्गलों का वेदना का काल भिन्न एवं निर्जरा का काल भिन्न होता है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रदेशोदय के रूप में कर्मपुद्गल का वेदन होने के अनन्तर ही वे आत्मा से पृथक होते हैं। निर्जरा के अनेक विध प्रकार हो सकते हैं। आठ प्रकार के कर्मों की निर्जरा होने से निर्जरा के आठ प्रकार भी हो सकते हैं तथा निर्जरा के प्रमुख साधन तप के आधार पर निर्जरा के १२ भेद भी प्रतिपादित है। बन्धन और मक्ति की प्रक्रिया को समझने की दृष्टि से जैन दर्शन में नवतत्त्व प्रतिपादित हैं- १. जीव, २. अजीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ आस्त्रव, ६ संवर, ७ निर्जरा, ८. बन्ध ओर ९ मोक्ष। इनमें पुण्य, संवर और निर्जरा ये तीन तत्त्व जीव को मोक्ष की ओर ले जाते हैं। निर्जरा के लिए तप का सम्यक् आराधन आवश्यक है। तप भी बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का है। इन दोनो के छ: भेद हैं। बाह्य तप के छः भेद हैं- १. अनशन, २. ऊणोदरी, ३ भिक्षाचर्या (वृत्ति परिसख्यान) ४. रसपरित्याग, ५ कायक्लेश और ६. प्रतिसंलीनता। आभ्यन्तर तप के छः भेद इस प्रकार हैं- १ [146] जैनतत्त्व सार
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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