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चेतना के स्थूल व बाहरी स्तर का ही बोध होता है, चेतना की यथार्थता जो सूक्ष्म व आंतरिक स्तर पर होती है, उसका बोध नहीं होता । यह अयथार्थ ज्ञान हितकारी व कल्याणकारी नहीं होता है, अतः इसे असम्यक् ज्ञान या मिथ्या ज्ञान कहा है।
समताभाव
ध्यान से जैसे-जैसे दर्शन पर आए आवरण क्षीण होते जाते हैं, बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे अनुभव - शक्ति बढ़ती जाती है। उस अनुभव से होने वाला ज्ञान यथार्थ (भ्रांति-रहित) सत्य व कल्याणकारी होता है। ऐसा ही ज्ञान 'प्रज्ञा' या 'सम्यक् ज्ञान' कहा जाता है। इस यथार्थ - सत्य ज्ञान के प्रभाव से इन्द्रिय-बुद्धिजनित ज्ञान भी सम्यक् होता जाता है ।
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ध्यान-साधक दर्शन या अनुभव के स्तर पर प्रत्यक्ष देखता है कि केवल बाहरी स्थूल जगत् ही नहीं बदल रहा है बल्कि यह परिवर्तन सूक्ष्म लोक (जगत) और भी अधिक शीघ्रता से हो रहा है । शरीर के उपरिभाग से भीतरी भाग में, शरीर में उत्पन्न संवेदनाओं व विद्युत चुम्बकीय लहरों में, मन में, अवचेतन मन में क्रमशः सैकड़ों-हजारों गुना अधिक से अधिक द्रुतगति से परिवर्तन ( उत्पाद - व्यय) हो रहा है। यहाँ तक कि लोक के सूक्ष्म स्तर पर तो यह उत्पाद - व्यय एक पल में अगणित बार प्रत्यक्ष अनुभव होता है।
इस प्रकार ध्यान-साधना से जैसे-जैसे दर्शन के आवरण क्षीण होते जाते हैं, वैसे-वैसे संसार की अनित्यता का प्रत्यक्ष दर्शन ( साक्षात्कार) होता जाता है। ऐसे अनित्य संसार में आत्मबुद्धि रखना, उसे अपना मानना, उससे रक्षण व शरण की आशा करना अज्ञान है। संसार में शरणभूत कुछ भी नहीं है। प्रकृति के उत्पाद-व्यय प्रक्रिया से उत्पन्न रोग, जरा, मृत्यु या वियोग से कोई किसी को नहीं बचा सकता है। इस प्रकार ध्यान-साधक संयोग में वियोग, जीवन में मृत्यु, आशा में निराशा का दर्शन करने लगता है। इससे उसमें तन, मन, धन, जन आदि समस्त परिवर्तनशील अनित्य वस्तुओं के प्रति ममत्व व अहंत्व हटकर अनात्मभाव की जागृति होती है। वह अपनी अनुभूति के आधार पर यह भी जानता है कि रोग, बुढ़ापा, इन्द्रियों की शक्ति-क्षीणता, मृत्यु, अभाव, वेदना, पीड़ा आदि तो दुःख हैं ही, परन्तु संसार में जिसे सुख कहा जाता है वह भी दुःख रूप ही है। कारण कि वह सुख राग व मोहजनित होता है। राग चित्त में असंख्य लहरें या तूफान उठने का रूप है। यह राग का तूफान समता के सागर की शान्ति को भंग कर अशान्ति, आकुलता, तनाव, आतुरता व जड़ता उत्पन्न करता है व मूर्छित बनाता है । इस प्रकार वह भोगों के सुख
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जैतत्त्व