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________________ पारायण कर चुके हैं। अधीत ग्रन्थों का चिन्तन-मनन करते हुए सत्य का अन्वेषण करने में समर्पित विद्वान हैं। आप मात्र बौद्धिक व्यायाम में विश्वास नहीं करते, अपित धर्म को जीवन का उन्नायक स्वीकार करते हैं। आप सरल स्वभावी, ध्यानसाधना के अभ्यासी, सत्-असत् के विवेकी साधनाशील और जैन धर्म के हितैषी मनीषी हैं। यह कहते हुए मन को पीड़ा होती है कि लोढा साहब के द्वारा पुण्य-पाप तत्त्व में प्रकट किए गए विचारों पर विद्वानों की कोई विशेष प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई। संभव है उनके विचार प्रभावकारी सिद्ध हुए हों, किन्तु प्रचलित मान्यता के विरोध में सत्य को स्वीकार करना एवं स्वीकारोक्ति देना सबके लिए सहज नहीं होता है। जैन साधन-पद्धति में सूक्ष्मता एवं विशुद्धि का पदे-पदे सन्निवेश है। मूल में कर्मों का बन्धन जब तक न हो तब तब आस्रव भी विशेष अनिष्टकारी नहीं होता है। कषाय की उपस्थिति में आस्रव के अनन्तर कर्मों का बन्धन होता ही है, इसलिए आस्रव अनुपादेय है। आस्रव के समय साधक सजग हो जाय तो वह बन्धन की प्रक्रिया को शिथिल कर सकता है। कर्मों के आस्रव को रोकने के लिए संवर की साधना है। आस्रव और संवर में योग की प्रधानता होती है जबकि बन्ध और निर्जरा में क्रमशः कषाय-कषायजय का प्राधान्य होता है। मन-वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहा गया है, इससे आत्मा-प्रदेशों में सम्पदन होता है तथा आकाश में विद्यमान कर्म-पुद्गल आत्मा को ओर आकर्षित होते हैं, जिसे बन्ध कहा जाता है। शुभ आस्रव को पुण्यासव एवं अशुभ आस्रव को पापास्रव कहा जाता है। आगमों के आस्रव के जिन २० भेदों या ४२ भेदों का उल्लेख आता है वे पापासव के ही भेद हैं, पुण्यास्रव के भेदों को कोई उल्लेख नहीं है। इसका कारण यही प्रतीत होता है कि आस्रव तत्त्व का प्रतिपादन पाप के आस्रव को ही आधार बनाकर किया गया है। संवर के २० और ५७ भेद प्रतिपादित हैं। प्रस्तुत पुस्तक के 'कषाय की कमी से पुण्यासव और कषाय की वृद्धि से पापास्रव' प्रकरण से निरूपण करते हुए कहा है फलितार्थ यह है कि कषाय के क्षय से दो प्रकार के फल मिलता हैं यथा(१) पाप कर्मों का क्षय होता है एवं (२) पुण्य कर्मों का उपार्जन होता है अथवा यों कहें कि कषाय क्षय का आभ्यंतरिक फल क्षमा, सरलता, मृदुता आदि धर्मों की [102] जैनतत्त्व सार
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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