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________________ अप-कीर्ति होगी और करते है तो बाद में मुनि-वेश छोडकर गृहस्थ बनने पर समाज में उनकी प्रतिष्ठा नहीं रहेगी। उधर ब्रह्मगुलालजी ने घर में अपनी धर्मपत्नी से और परममित्र मथुरामल्ल से परामर्श किया और तत्पश्चात् विधिवत् जैन मुनि का वेश धारण कर राजसभा में पहुँचे। सभी तो चकित रह गये । ___मंत्री अपने गर्भित कटाक्ष के साथ बोले - 'मुनिवर ब्रह्मगुलालजी। आप अपने सदुपदेश से राजा के पुत्रवियोगशोक का शमन कीजिये ।' और मुनिवेशधारी ब्रह्मगुलालजी ने ऐसा तो प्रभावपूर्ण बोध दिया कि बस, राजा का शोक समाप्त । "भाव क्षमा उर में धरो, कीजै कोटि उपाऊ। कमरेख टलती नहीं, कीजै कौन उपाउ । भाव क्षमा उर में धरो।' 'कोई न सुख, दु:ख दे सके, तज के भ्रम और भाव। निज हित का उद्यम करौ, जग रूप विचार ॥ भाव क्षमा उर में धरो॥' 'राजन् । रोष ने कीजिये, चित्त मांहि विचारी। मन की दुविधा परिहरो, जग रूप (को) निहारी॥ भाव क्षमा उर में धरो॥' 'सुख-दु:ख परणति कर्म की, दोऊ बन्धन रूप। (कूप) पंचम गति बिन सुख नहीं, जग है दु:ख स्वरूप ।। भाव क्षमा उर में धरो॥ 'हमरे हाथ कुंवर मरो (मर्यो) जग रूप विचारि। तन कर राग रु द्वेष का (दोष को) तनसूं समता लारि (तनमें समता लाय-पाठभेद) मौन धरो कहि भूप सों, यों वे (ऐसे) श्री मुनिराय। क्षमा उर में धरो ।।१३ तीसरी ढाल में शोकमुक्त प्रसन्न राजा और वास्तव में ही मुनि बनना बताया गया है। - और यह तत्त्वबोध सुनकर शोकमुक्त होकर, राजा आनंद ब्रह्म गुलाल मुनिकथा: * 581
SR No.022860
Book TitleJain Ras Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
PublisherVeer Tatva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages644
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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