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________________ ‘नेमिनाथ काग’, ‘कालिकाचार', 'सुकौसल चरित्र' का नामोल्लेख भी किया गया है । 'आचार्य जिनचंद सूरि गीत' कवि की भक्तिपूर्ण रचना है । धार्मिक, पौराणिक भक्तिपरक काव्यकृतियों के मध्य भावपूर्ण रचना ‘आषाढभूति रास’ तत्कालीन संस्कृति की अभिव्यंजना एवं रास-साहित्य की महत्त्वपूर्ण कडी है। 'आषाढभूति रास' की कथावस्तु : राजगृहीनगर वन, उद्यान, पौल, पगार आदि व्यवस्थाओं के साथ सुशोभित है। वहाँ के राजा सिंहरथ बडे न्यायी है। एक बार मुनि धर्मरुचि अपने ५०० संतों के साथ वहाँ अपना चातुर्मास करते हैं। आचार्य धर्मरुचि का एक शिष्य मुनि आषाढभूति लब्धियों के भंडार है। वे एक दिन विहार करते हुए राजगृही नगर में स्थित एक नटुवा के घर प्रविष्ट हुए वहां भोजन में उन्होंने मोदक पाया। उस मोदक को गुरु के आहार लेने की भावना से उन्होंने अन्य मुनि वेश में दूसरा मोदक भी प्राप्त किया । इस प्रकार वह रूप परिवर्तित करते हुए अनेक मोदक प्राप्त करते रहे। मुनि के चमत्कारिक व्यवहार को देखकर - घर बहार बैठा नटुवा बडा आकृष्ट हुआ और उसने मुनि से अपने घर रहने की प्रार्थना की - नटुवा व भाव सूं, हम तुम्हारे दासा रे । ल्याँ सब कुछ जै चाहीये, पूरि हमारी आसा रे ॥३॥ दूसरे दिन जब मुनि नटुवा के घर के सामने के निकले तो उन्होंने नटुवा के घर में अनेक मोदक बिखेर दिए । नटुवा को दो पुत्रियां भुवनसुंदरी और जयसुंदरी यौवनसम्पन्न थी । दोनों ही मुनि की विद्या से चमत्कृत और उसके स्वरूप पर मोहित हुई। दोनों युवतियाँ सर्वांग- सुन्दर और राषडी, वेसर, कुंडल, हार, मेखला आदि आभूषणों से सुसज्जित थीं । मुनि के कायिक सौन्दर्य से मुग्ध हुई युवतियों ने विरक्ति मार्ग की कठिनाइयों के उल्लेख के साथ अपना प्रणय निवेदन इन शब्दों में किया - 'तुम से घरि घरि किम हीडइ । तुम सिर सेहर सोहइ मीठइ । अइसे महल भोगो आई । हम सुं मुनिवर करौ सगाई ॥२८॥ तुम्हइ दीस सुंदर कोमल देही । इण संयम सुं तजहु सनेही ||२९|| ' 552 * न रास विभर्श
SR No.022860
Book TitleJain Ras Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
PublisherVeer Tatva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages644
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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