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________________ ही आश्चर्य की बात है कि जैन कवियों द्वारा रचित हिन्दी भाषा का साहित्य इतनी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद ' हिन्दी साहित्य के इतिहास' में इसका नामोल्लेख तक प्राप्त नहीं होता । कुछ हिन्दी के विशिष्ट कवियों के द्वारा मात्र इतना कह देने से कि यह केवल धार्मिक साहित्य है और उसमें साहित्यिक तत्त्व विद्यमान नहीं है । लेकिन समय की अविरत धारा को कौन रोक सका है। धीरे धीरे जैनाचार्यों एवं जैनकवियों द्वारा रचित साहित्य भारतीय जनमानस के सामने आने लगा तथा जन-जन में लोकप्रिय होने लगा है । सर्वप्रथम अपभ्रंश भाषा के महाकाव्य पउमचरिउ (स्वयंभू) रिट्ठणेमिचरिउ, महापुराण, जम्बूमिचरिउ जैसे महाकाव्यों पर महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जैसे ‘सरस्वती पुत्र' की दृष्टि पडी तो उन्होंने महाकवि स्वयंभू रचित 'पउमचरिउ' को हिन्दी भाषा का प्रथम महाकाव्य तक घोषित कर दिया। तत्पश्चात् हिन्दी जगत् के मूर्धन्य विद्वानों में स्वर्गीय डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, स्वर्गीय डॉ. माताप्रसाद, डॉ. राम सिंह तोमर तथा डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी प्रभृति विशेष उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने जैन हिन्दी कवियों के द्वारा रचित काव्यों का मूल्यांकन कर उन्हें हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ काव्यों की श्रेणी में सुशोभित किया। वर्तमान हिन्दी के मूर्धन्य मनीषियों में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय एवं अविस्मरणीय है उन्होंने 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' नामक अपनी पुस्तक में जो पंक्तियाँ लिखीं वे ध्यान देने योग्य तथा एक कवि अथवा लेखक को पक्षपातरहित एवं स्पष्टवादी होना चाहिए इसका स्पष्ट दृष्टान्त प्रस्तुत किया है । कहा भी जाता है कि सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनः । अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥ डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा उद्धृत पंक्तियाँ इस प्रकार से हैं 'इधर जैन अपभ्रंश चरित - काव्यों की जो विपुल सामग्री उपलब्ध हुई है, वह सिर्फ धार्मिक सम्प्रदाय के मुहर लगाने मात्र से अलग कर दी जाने योग्य नहीं है। स्वयम्भू, चतुर्मुख, पुष्पदन्त और धनपाल जैसे कवि केवल जैन होने के कारण ही काव्यक्षेत्र से बाहर नहीं चले जाते । धार्मिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्य कोटि से अलग नहीं की जा सकती । यदि ऐसा समझा जाने लगे तो तुलसीदास का रामचरितमानस भी साहित्य क्षेत्र से ब्रह्मरायमलकृत नेमीश्वर रास का समीक्षात्मक अध्ययन 535 -
SR No.022860
Book TitleJain Ras Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
PublisherVeer Tatva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages644
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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