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________________ इसके बाद वे छ: माह तक आहार हेतु विहार करते रहे, पर लोग आहार की विधि नहीं जानते थे, अत: उन्हे आहार नहीं मिला । वैशाख शुक्ला तृतीया को हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने जातिस्मरण द्वारा आहार की विधि को जाना और उन्हें इक्षुरस का पान कराया। तभी से यह पावन दिन अक्षयतृतीया के रूप में विख्यात हो गया। आगे चलकर आदिनाथ ने केवलज्ञान को प्राप्त किया। देवताओं ने धर्मसभा की रचना की। भगवान ने सभी प्राणियों को विस्तारपूर्वक धर्म का उपदेश दिया। अंत में योगनिरोध करके कैलाश पर्वत से उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया। यही इस कृति की मुख्य कथा वस्तु है किन्तु प्रसंगवश इसमे भरतवाहुबली के युद्ध एवं जय-पराजय आदि का भी वर्णन हुआ है। मंगलाचरण - 'आदिनाथ रास' का प्रारम्भ मंगलाचरण से हुआ है, जिसमें कवि ने आदि जिनेश्वर, सरस्वती माता एवं अपने गुरु सकलकीर्ति, भुवनकीर्ति को नमस्कार किया है - 'श्री आदिजिणेसवर आदि जिणेसर पाय प्रममेसुं॥ सरसति स्वामिणी वलि तवउं, बुधि सार हुं मागुं निरमल । श्री सकलकीरति पाय प्रणमिनि मुनि भुवनकीरति गुरुवांदुसोहजल ॥" रस-निरूपण - 'आदिनाथ रास' रस-निरूपण और भाव-विवेचन की दृष्टि से एक उत्कृष्ट कृति सिद्ध होती है। इसमें श्रृंगार, वात्सल्य, वीर, रौद्र आदि अनेक रसों का सुन्दर वर्णन हुआ है। अक्षहरगार्थ कतिपय स्थल द्रष्टव्य हैं - (क) श्रृंगार रस - आंगोपांग मोडे घणाए, हाव-भाव करे राग तो। मन रीझे सभा तणोए, रुध्या इन्दीय भाग तो॥ नीतंजस पात्र जाणीए, नाचे सरस अपार तो। हाव-भाव रचना करए, मोह तणे विस्तार तो।। 526 * छैन. यस. विमर्श
SR No.022860
Book TitleJain Ras Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
PublisherVeer Tatva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages644
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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