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________________ ४. नागेंद्रगच्छनामंडन विजयसेनसूरिराय उपदेशे वेउनरप्रवरे धर्मे धर्यो दृढभाव । ५. प्रा. जैनलेखसंग्रह - भाग - २ में इन लेखों की सूचि है। जैन सा. का. संक्षिप्त इति. - मो. देसाई - पृ. ३६४ जैनेतर परंपरा में - प्रभासपुराणादि में भी रैवतकगिरनार का माहात्मय दिखाया है। यदुक्तं प्रभास पुराणे - रैवताद्रौ जिनो नेमियुगादिविमलाचले.... तथा स्पृष्ट्वाश→जयतीर्थंगत्वा रैवतकाचले स्नात्वा गजपदेकुंडे पुनर्जन्मो न विद्यते । ८. (गु. ऐति. लेख नं. १५) ९. गू. के. ऐति - लेख - १ पृ. २१) १०. अ. रैवतकल्प : प्रा. गू. का. संग्रह - परि - ५ ब. प्रा. जै. लेखसंग्रह भाग - २ लेख नं. ५०, ५ क. कुमारपालप्रतिबोध - ११. स्कंदगुप्त के जूनागढ के शिलालेख में (गुप्तकाल-ई.४५५-५६) चक्रपालितने विष्णु का मंदिर बनवाने का उल्लेख है। १२. मूलकृति की गुजराती छांया - आपणां कविओ खंड -१ पृ. १६६ से उद्धृत १३. गिरनार तीर्थोद्धार रास में भी यह कथा है - रत्न संघपतिने गिरनार पर मूर्ति का स्नात्र करते ही लेपमय बिंब गल गया। अत: संघपति खिन्न होकर अपने को धिक् कहने लगा। उसके उपवास करने पर देवी अंबा प्रत्यक्ष हुई और कंचनबलानक प्रसाद पर ७२ बिंबो को दर्शन करवाये। रत्न श्रावकने प्रासाद निर्मित कर मणिमय बिम्वप्रतिष्ठा की व अनेक सुकृत किये । इस संबंध में गिरनार कल्प में भी उल्लेख है। १४. विंव की प्रतिष्टा देहली पर कैसे हुई इसकी कथा कही गई है। इन कथा प्रसंगा में कथा घटक की समानता रहती है । अद्भुत तत्त्व का आश्रय लेकर रोचकता लाई जाती है। १५. वस्तुपाल के कार्यों की प्रशंसा गिरनारलेख - १ वि. सं. १२८८ में है । वस्तुपालने गिरनार पर १२ करोड ८० लाख खर्च किया (तीर्थकल्प-जिनप्रभसूरि), और शत्रुजय, संमेतशिखर, अष्टापद आदि तीर्थ गिरनार पर बनवाये। गिरनार तीर्थ व उसके शिखर व उसके शिखर पर स्थित विभिन्न स्थलों का माहात्मय वर्णन है । १६. विभिन्न व्रतों का फल, व्रत, दान-महिमा आदि के निरूपण में कविकी धर्मप्रचार की दृष्टि ही रही है । मध्यकालीन कविता की इस विषय में परंपरा भी रही है, य विषय कवियाका एक भाग (हिस्सा) ही थे । काव्य में जो रुढियाँ प्रस्थापित हुई, उन्हीं काव्यलक्षणों का अनुसरण कवि करते है। जैन सूरियों द्वारा कृतियों में ये विषय अभीष्ट थे। धर्मवोध व धर्ममहिमा के साधन रूप में कृतियाँ रची गई है। रेवंतगिरिरासु - एक परिचय * 519
SR No.022860
Book TitleJain Ras Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
PublisherVeer Tatva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages644
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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