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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 507 समय संभव हो सके। अनेक लोगों के जीवन-चरित्र उनके जीवन-काल में लिखे जाते हैं; अत: यह स्पष्ट है कि ऐसे जीवन चरित्रों में जिन्दगी भर का हाल दे सकना सम्भव नहीं होता। यही कारण है कि जीवनी साहित्य का एक छोर स्फुट संस्मरण को माना जाता है और उसका दूसरा छोर उस जीवनी को स्वीकारा जाता है, जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक का इतिहास हो। शिप्ले (Shiple) के अनुसार जीवनी में नायक के संपूर्ण जीवन अथवा उसके यथेष्ट भाग की चर्चा करनी चाहिए और अपने आदर्श रूप में एक विशिष्ट इतिहास होना चाहिए। यह ठीक है, पर जीवनी साधारण इतिहास और काल्पनिक कथा दोनों से बहुत भिन्न होती है। पाश्चात्य साहित्य में जीवनी को बहुत पहले-से एक विशेष साहित्य रूप माना जाता है, उपन्यास या इतिहास नहीं। 'यदि जीवनी को कथा-साहित्य से अलग रखना है तो यह कभी न भूलना चाहिए कि वास्तविक जीवनी वही है जिसमें तथ्यों के अन्वेषण में और उन्हें प्रस्तुत करने में विशेष ध्यान रखा जाय और जीवनी प्रामाणिक तथा सम्यक् जानकारी पर आधारित रहे। जीवनी लेखक को उन सभी तथ्यों की जानकारी कर लेनी चाहिए; जिन्होंने उसके चरित-नायक के जीवन पर प्रभाव डाला हो। साथ ही, जीवन लेखक को चरित नायक के जीवन की घटनाओं को उसी क्रम में प्रस्तुत करना चाहिए, जिसमें कि वे घटित हुई थीं।'' जीवनी साहित्य में नायक का केवल अतिरंजित एवं अति प्राकृत वर्णन-ब्यौरा रहेगा तो वह जीवनी विश्वसनीय व साहित्यिक नहीं बन पायेगी, लेकिन यदि उसके अन्तर्गत नायक के जीवन-तथ्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण, सम्यक् निरूपण और मनोवैज्ञानिक अध्ययन का दिशा सूचन होगा तो वह प्रेरणात्मक और विश्वसनीय जीवनी का महत्व अंकित कर साहित्यिक कृति का महत्व धारण कर लेगी। साहित्यिकता का तत्त्व उसकी भाषा शैली, अभिव्यक्ति की विशिष्टता, साहजिकता व स्वाभाविक निरूपण शैली से स्फुट होगा। अतः जीवनी भी साहित्य की एक अलग महत्वपूर्ण विधा के रूप में अपना महत्व सिद्ध कर पायेगी। आधुनिक युग में तो भारतेन्दु काल से ही प्रेरणा-प्रदान व्यक्ति की स्वाभाविक जीवनी लिखने का उपक्रम प्रारंभ हो चुका था, जिसका उत्तरोत्तर काफी विकास आज हम देख सकते हैं। किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट प्रक्षेप करने वाली व्यक्ति की जीवनी लिखी जाती है, जो विश्वसनीय सूत्रों से माहिती उपलब्ध कर, उनसे भेंट-मुलाकात कर, संस्मरणों के द्वारा भी कार्य किया जाता है। आत्म-कथा : - आत्म-कथा में लेखक के अपने जीवन का विशिष्ट दृष्टिकोण से लिखा 1. द्रष्टव्य-हिन्दी साहित्य कोश-भाग-1, पृ॰ 305.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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