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________________ विषय-प्रवेश युग में मानव-स्वातंत्र्य को जो महत्व दिया जाता है, वह महावीर ने कितने वर्षों पूर्व प्रतिपादित किया था। मानव-स्वातंत्र्य के साथ ही आत्मा की स्वतंत्रता की उद्घोषणा करके महावीर ने पूरे विश्व को बताया कि प्रत्येक आत्मा अपने बल पर परमात्मा बन सकती है और जीव अपने ही कारणों से मुक्ति या बंधन को पाता है। राग-द्वेष और हिंसात्मक कर्मों से मानव दु:ख की जंजीरों से बंधता है और अहिंसापूर्ण (व्यक्तिगत या सामाजिक) कर्मों से वह दु:ख-चक्र से मुक्त होता है। आधुनिक यंत्रवादी युग में जैन दर्शन के पंच महाव्रतों का पालन सर्वथा हितकारी हो सकता है, यह निर्विवाद है। 'जियो और जीने दो' का जैन दर्शन का मंत्र युग की गतिशीलता से त्रस्त मनुष्य के लिए वरदान रूप सिद्ध हो सकता है सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं। प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम्॥ यह सूत्र जो प्रत्येक जैन घोषित करता है, वह केवल जैन समाज को ही नहीं, प्रत्युत् विश्व-कल्याण को नजर में रख कर ही करता है। विश्व के सभी राष्ट्र सांस्कृतिक तथा राजकीय नैकट्य स्थापित करने पर भी भौतिक-भागदौड़ की वृत्ति तथा हिंसा के सोये डर के कारण मनुष्य चैन की सांस नहीं ले पाता। तब धर्म ही शांति व प्रकाश देता हैं। मानव की मानवता को जगाकर व्यक्ति को स्वतंत्र व सुखी बनाने का उपक्रम करता है। इस संदर्भ में जैन विद्वान श्री कन्हैयालाल सरावजी के विचार उल्लेखनीय हैं कि- 'आज संसार में जो आपाधापी, शस्त्रों की होड़, अधिकारों की छिनाझपटी, सभी क्षेत्रों में उथल-पुथल मची हुई है, अंधा-धूंधी विधेयक बन रही है, अधिकारों का सीमांकन और जाने क्या क्या हो रहा है, उन सबके बदले यदि संसार भगवान महावीर के दिशाबोध को अपना ले तो सारी रस्साकसी का अन्त होकर स्वस्थ, स्वावलंबी और सर्वोदयी समाज का उदय हो सकता है। 1. श्री कन्हैयालाल सरावजी-' श्रमण' पत्रिका, फरवरी 1976, पृ॰ 34.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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