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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 501 घटनाओं की श्रृंखला का गठित रूप आपके निबंधों में पाया जाता है। बाबू कामता प्रसाद जी के सांस्कृतिक निबंध की भाषा-शैली दर्शनीय है-यथा 'तीर्थंकर के दर्शन होते ही हृदय में पवित्र आह्लाद की लहर दौड़ती है, हृदय भक्ति से भर जाता है। यात्री उस पुण्य भूमि को देखते ही मस्तक नमा देता है और अपने पथ को शोधता हुआ एवं उस तीर्थ की पवित्र प्रसिद्धि का गुणगान मधुर स्वर-लहरी से करता हुआ आगे बढ़ता है। पं० के० भुजबली शास्त्री ने भी इसी प्रकार के ऐतिहासिक निबंध लिखे हैं। दानी श्रावकों पर आपके कई अन्वेषणात्मक निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। मुख्तार जी से विपरीत आपकी समास शैली है। संश्लिष्ट शैली में आप थोड़े में बहुत-कुछ व्यक्त करते हैं। लेखन शैली में वाक्य सुव्यवस्थित और गंभीर होते हैं। 'यद्यपि तथ्यों के निरूपण के ऐतिहासिक कोटियों और प्रमाणों की कमी है, तो भी हिन्दी जैन साहित्य के विकास में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। प्रायः सभी निबंधों में ज्ञान के साथ विचार का सामंजस्य है। शब्द चयन, वाक्य-विन्यास और पदावलियों के संगठन में सतर्कता और स्पष्टता का आपने पूरा ध्यान रखा है। श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय के ऐतिहासिक निबंध महत्वपूर्ण है। संस्मरणकार के अतिरिक्त जागृत निबंध साहित्यकार के रूप में भी प्रसिद्ध है। उनके निबंध ऐतिहासिक चरित्रों से सम्बंधित हैं, जिनको पढ़कर हमारे हृदय में वीरोचित भावना पैदा हो जाती है। उनकी शैली पूर्णतः निजी है-व्यंग्य एवं हास्यपूर्ण शैली में भाषा में उछल-कूद से मार्मिकता आ जाती है। पत्र-पत्रिकाओं में आपके अनेक निबंध प्रकाशित हुए हैं। इतिहास और पुरातत्व के वेत्ता डा० हीरालाल जैन ने दार्शनिक तथा अन्वेषणात्मक निबंध लिखे हैं तथा कई पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखी हैं, जो इतिहास के निर्माण में विशिष्ट स्थान रखती हैं। जैन इतिहास की पूर्व पीठिका की छोटी-सी रचना में उनकी शैली स्पष्ट दीखती है। गागर में सागर भरने वाली प्रौढ़ रचना शैली है। भाषा में धारावाहिकता के साथ सुव्यवस्थितता व परिमार्जितता है। ____ मुनि श्री कान्तिसागर जी ने जैन शिल्प व स्थापत्य से सम्बंधित दो-तीन निबंध संग्रह लिखे हैं। प्राचीन मूर्तिकला व वास्तुकला सम्बंधी आपके निबंध अनेक स्थानों के पुरातत्व पर प्रकाश डालते हैं। अभी हाल में भारतीय ज्ञानपीठ 1. द्रष्टव्य-कामताप्रसाद जैन-जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, पृ. 9. 2. आ. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग-2, पृ. 126.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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