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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 499 निरन्तर पूर्ण लगन से किया है। प्रेमी जी की भाषा प्रवाहपूर्ण और सरल है। छोटे-छोटे वाक्यों और ध्वनि युक्त शब्दों के सुन्दर प्रयोग ने इनके निबन्धों को सजीव और रोचक बना दिया है।' एक पत्रकार और शोधक के लिए भाषा में जिन गुणों की आवश्यकता होती है, वे सब गुण इनके गद्य में पाये जाते हैं। इनकी गद्य-लेखन शैली स्वच्छ और दिव्य है। दुरुह से दुरुह तथ्य को बड़े ही रोचक और स्पष्ट रूप में व्यक्त करना प्रेमी जी की स्वाभाविक विशेषता है।" पं. नाथूराम 'प्रेमी' की विवेचनात्मक शैली का एक अंश द्रष्टव्य है-'साहित्य शास्त्र का शायद आपने कभी अध्ययन नहीं किया। उनके मिशन के लिए शायद इसकी जरूरत भी नहीं थी। इसलिए आपने जो कथा-साहित्य लिखा है, उसका अधिकांश साहित्य की कसौटी पर शायद ही मूल्यवान ठहरे, परन्तु यह बड़ा प्रभावशाली है और अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए काफी समर्थ है। श्री कन्हैयालाल मिश्र के निबंधों की भाषा-शैली में गंभीरता, हास्य, व्यंग्य सब कुछ विषयानुसार प्राप्त होता है-जैसे-'तब आज की तरह हरेक दफ्तर पर 'नो वैकेन्सी' की पाटी नहीं टंगी थी, वे चाहते तो आसानी से डिप्टी कलक्टर हो सकते थे, पर नौकरी उन्हें अभीष्ट न थी, वे वकील बने और थोड़े ही दिनों में देवचन्द के सीनियर वकील हो गये। वकील की पूंजी है वाचालता और सफलता की कसौटी है झूठ पर सच्च की पालिश करने की क्षमता। बाबू सूरजभान एक सफल वकील, मूक साधना जिनकी रुचि और सत्य जिनकी आत्मा का सम्बल! काबे में कुछ हो, न हो, यहाँ मयखाने से एक पैगम्बर जरूर निकला। जुगलकिशोर 'मुख्तार' साहब भी प्रौढ़ निबन्धकार हैं। उन्होंने भी ऐतिहासिक, गवेषणात्मक और आचारात्मक निबन्ध काफी संख्या में लिखे हैं। उनकी गद्य-शैली की यह एक बड़ी विशेषता है कि वे विषयों को बार-बार का दोष कहीं महसूस नहीं होता। भावों की व्यंजना वे स्पष्ट शब्दों में निर्भीकता से करते हैं। शुद्ध खड़ी बोली में कहीं-कहीं उर्दू के शब्दों का भी वे प्रयोग करते हैं। 'आपकी भाषा में साधारण प्रचलित उर्दू शब्द भी आ गये हैं। मुख्तार साहब 1. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग-2, पृ. 129. 2. देखिए-पं. नाथूराम प्रेमी-पूज्यनीय बाबू जी 'जैन जागरण के अग्रदूत' अन्तर्गत लेख, पृ. 281. 3. देखिए-की कन्हैयालाल मिश्र-जैन जागरण के दादाभाई-शीर्षक निबंध, 'जैन जागरण के अग्रदूत, ग्रंथ सं०, पृ. 295.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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