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________________ 498 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य आचार्य कान्ति सागर जी, मुनि विद्याविजय, आचार्य नथमल जी, आ• तुलसी, पं. अगरचन्द नाहटा जी, कामता प्रसाद जैन, पं. नाथूराम 'प्रेमी जी', पं० भुजबली शास्त्री, पं० जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर जी', प्रो० हीरालाल, पं० अयोध्या प्रसाद गोयलीय. आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रो० ए० एन० उपाध्ये, मुनि जिनविजय जी, प्रो० गोरावाला, जैनेन्द्र कुमार जैन, मुनि कल्याण विजय जी आदि अनेक तेजस्वी रत्नों ने हार्दिकता से, पूरी लगन से-जैन धर्म के आचारात्मक, विचारात्मक, गवेषणात्मक और ऐतिहासिक निबंध लिख कर निबंध साहित्य का भंडार समद्ध किया है। इन सभी निबंधकारों के निबंधों का विषय प्राय: जैन धर्म व दर्शन से सम्बंधित होने पर भी उनका प्रदान महत्वपूर्ण है। "प्रायः सभी जैन लेखक हिन्दी भाषा के माध्यम द्वारा तत्त्वज्ञान, इतिहास और विज्ञान की ऊँची-से-ऊँची बातों को प्रकट कर रहे हैं। यद्यपि मौलिक प्रतिभा सम्पन्न निबंधकारों की संख्या अत्यल्य है, तो भी अभीप्सित विषय के निरूपण का प्रयास अनेक जैन लेखकों ने किया है।' नेमिचन्द्र जी का यह विधान वैसे सही है, लेकिन मौलिक प्रतिभा सम्पन्न निबंधकारों की अत्यल्प संख्या के विधान से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि निबंध साहित्य को गौरवानित करने वाले एक से बढ़कर एक विद्वान् यहाँ प्राप्त हैं, हाँ, यदि साहित्यिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, राजकीय एवं अन्य विषय पर उन्होंने निबंध नहीं लिखे हैं, लेकिन प्राचीन जैन ग्रन्थों, ऐतिहासिक व्यक्ति व स्थल सम्बंधी गवेषणात्मक, विवेचनात्मक निबन्ध लिखे हैं और इस अर्थ में मौलिक निबंधकारों की संख्या उनको अत्यल्प दीखती हो तो पता नहीं। स्वयं नेमिचन्द्र जी एक विद्वान तत्त्व चिंतक, इतिहासकार और निबन्धकार के रूप में जैन जगत साहित्य के यशस्वी नक्षत्र हैं। यदि सम्प्रदाय की झंझट में न पड़ें तो हिन्दी जैन साहित्य की श्रीवृद्धि प्रायः दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान एवं मुनिराजों के द्वारा सविशेष हुई है। श्वेताम्बर मान्यता के विद्वान भी हैं, लेकिन तुलना में कम और उन्होंने प्रायः गुजराती व अंग्रेजी भाषा में अपना ज्ञान प्रकाशित किया है। पं० नाथूराम ‘प्रेमी' जी का नाम ऐतिहासिक सांस्कृतिक निबन्धकार के रूप में सर्वप्रथम आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने ही अन्वेषण का द्वार खोला, ऐसा कहना अनुचित न होगा। उन्होंने तो तीर्थ क्षेत्र, ऐतिहासिक व्यक्तियों, कवियों के वंश, गोत्र, विविध संस्कार, वातावरण, परिस्थितियाँ, आचार-शास्त्र के नियमों का भाष्य आदि पर निबंध लिखे हैं वे सभी अति महत्वपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण है। एक उत्तम अध्ययनशील शोधकर्ता के समान उन्होंने यह कार्य 1. आ० नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन-भाग-2, पृ० 120.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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