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________________ 488 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य परिमार्जित और सुसंस्कृत है। किन्तु उनका यह आरंभिक प्रयास होने के कारण कथानक, संवाद तथा चरित्र-चित्रण में कहानी कला के विकास की कुछ कमी रही है। देवेन्द्र प्रसाद जैन भी हिन्दी जैन कथा-साहित्य के एक प्रमुख कथाकार हैं। उन्होंने 'ऐतिहासिक स्त्रियाँ' नामक पौराणिक व ऐतिहासिक कथा वस्तु पर आधारित स्त्रियों की गौरव-गाथा को प्राचीन कथा-शैली में प्रस्तुत किया है। इसे पढ़ने के लिए पाठक का मन निरन्तर उत्सुक बना रहता है। भाषा में कहीं भी व्यर्थ आलंकारिकता नहीं है। सरल एवं सहज बोलचाल की भाषा ही सर्वत्र प्रयुक्त हुई है। कथा में इष्ट उपदेशक का रूप कथा प्रवाह को कहीं भी विशृंखलित नहीं बनाता। 'ज्ञानोदय' में महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य की वर्ण व्यवस्था का खोखलापन दिखलाकर समता व स्वतंत्रता का संदेश देने वाली तीन-चार कहानियाँ प्रकाशित हुईं। 'श्रमण प्रभाचन्द्र', 'जटिल मुनि' और 'बहुरूपिया' में वैसे टेकनिक का अभाव है और भाषा-शैली में बीच-बीच में संस्कृत के श्लोकों की अवतारणा की गई है, फिर भी जैन कथा के सन्दर्भ में इनका । महत्व अस्वीकृत नहीं किया जायेगा। उद्देश्य की दृष्टि से इनकी कहानियाँ अच्छी हैं। कवि परिमल जी ने संवत 1951 में 'श्रीपाल चरित' की पद्य में रचना की थी। उसकी पांडुलिपि शुद्ध करके बाबू ज्ञानचन्द जैन ने सन् 1904 में प्रकट किया। लेकिन प्रत खो जाने के कारण दीपचन्द जी उपदेशक के पास सरल हिन्दी में गद्यानुवाद ज्ञान चंद जी ने करवाया। श्री पाल मैना की कथा जैन समाज में अत्यन्त प्रसिद्ध है। स्वकर्म का सिद्धान्त, त्याग-संयम एवं श्रद्धा के द्वारा विषम परिस्थितियों को दूर करके सुख-संपत्ति एवं सम्मान प्राप्त किया जा सकता है-सुख-दुःख में तटस्थ रहकर सत्कर्मों के द्वारा जीवन सार्थक करने का संदेश इस कथा से प्राप्त होता है। श्री मंचपरमेष्ठि यंत्र और सिद्ध चक्र पूजन की अद्भुत महिमा वर्णित करने के लिए 'श्रीपाल-चरित' की रचना हुई है। इस कथा-ग्रन्थ की रचना-प्रक्रिया अत्यन्त रोचक है। मूल कथा वस्तु को सीधे रूप से न रखकर कथा के अन्तर्गत कथा की रचना की गई है। महाराज श्रेणिक व महारानी चेलना गौतम स्वामी से सिद्धचक्र पूजन का महात्म्य पूछते हैं तब उनकी शंका के समाधान हेतु वे श्रीपाल राजा का चरित्र वर्णित करते हैं। इस कथा ग्रन्थ की भाषा-शैली में गुजराती, मारवाड़ी आदि अन्य भाषा के शब्द-प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे परणे, ब्याहो, आवो-आवो, लूछो आदि। सुभाषितों का लेखक ने अच्छा प्रयोग किया है-यथा1. द्रष्टव्य-श्रीपाल चरित की भूमिका, पृ० 1.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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