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________________ 24 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य समझ कर अधिकार और आदर से वंचित रखा गया था। पुरुषों की तरह नारी को भी प्रवज्या (दीक्षा) देने की प्रथा भगवान महावीर के काल से लेकर निरन्तर आज तक चलती रही है। महावीर के समय अन्य धर्मों के आचार्य स्त्री को दीक्षित करने में भयस्थान देखकर हिचकते थे, लेकिन उसी समय महावीर के पंथ में हजारों स्त्रियाँ प्रवज्या को प्राप्त कर चुकी थी। इसी से जैन धर्म की व्यावहारिक सुसंगतता का अंदाजा लगाया जा सकता है। आचार्य विनोबा भावे जैन धर्म की नारी सम्बन्धी विचारधारा से काफी प्रभावित हए है, जो उन्होंने 'श्रमण' पत्रिका में प्रकाशित करते हुए लिखा है, 'महावीर के सप्रदाय में पुरुषों को जितने अधिकार दिये गये हैं, वे सब अधिकार बहनों को दिये गये थे। मैं इन मामूली अधिकारों की बात नहीं करता हूँ जो इन दिनों चलता है और जिनकी चर्चा आजकल बहुत चलती है। उस समय ऐसे अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई होगी। परन्तु मैं तों आध्यात्मिक अधिकारों की बात कर रहा हूँ। पुरुषों को जितने आध्यात्मिक अधिकार मिलते थे, उतने ही अधिकार स्त्रियों को भी हो सकते हैं। इन आध्यात्मिक अधिकारों में महावीर ने कोई भेद-बुद्धि नहीं रखी, जिसके परिणामस्वरुप उनके शिष्यों में जितने श्रमण थे, उनसे ज्यादा श्रमणियां थी। वह प्रथा आज तक जैन धर्म में चली आई महावीर ने समानता का दृष्टिकोण केवल स्त्री-पुरुष तक ही सीमित न रखकर सभी जातियों के बीच भी समानता का व्यवहार किया। शूद्रों को भी उनके धर्म में निःशंक प्रवेश दिया जाता था। महावीर ने सभी मनुष्य को समान समझकर सबको एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में स्वीकारा। उनके लिए कोई ऊंच-नीच, अमीर-गरीब नहीं थे। समानता के व्यवहार के लिए मनुष्य में समभाव एवं समता भाव भी आवश्यक हो जाता है। __ इस प्रकार जैन धर्म की दर्शन-पद्धति में अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, तपस्या, अपरिग्रह एवं समानता के तत्वों पर विशेष बल दिया गया है। वैसे तो काम, क्रोध, लोभ, रागद्वेषादि विकारों को जीतने के लिए संयम को भी अपनाना आवश्यक है। माया के मिथ्यात्व को समझने के लिए सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चरित्र को यथार्थ रूप में दैनिक व्यवहार में अपनाने पर जैन धर्म महत्व देता है। जैन-दर्शन की विशेषता : जैन दर्शन जहां एक ओर व्यक्तिनिष्ठ और तपश्चर्या मूलक है, वहां दूसरी ओर समाजनिष्ठ भी सदैव रहा है। अतः जैन धर्म और जैन साहित्य
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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