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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 451 ऐतिहासिक होता तो तत्कालीन परिवेश, परिस्थितियों और वातावरण को अनुभव करने के लिए पाठक उत्सुक रहता, कुछ जानने के लिए उसे आधार मानता और उस काल के साथ तन्मय होकर उस ऐतिहासिक स्पन्दनों को अपने भीतर भोग कर रसास्वादन कर पाता है। आधुनिक-सम सामायिक वातावरण के साथ तो उसका मानसिक रूप से तादात्म्य हो ही जाता है। स्वाभाविक रूप से अपने वातावरण को अनुभूत कर पाने में कठिनाई या विचित्रता कम लगती है। (3) तीसरी विशेषता यह कभी हय कही जायेगी कि ऐतिहासिक पात्रों व कथा वस्तु के साथ अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग उपयुक्त नहीं प्रतीत होता, उर्दू-संस्कृत के शब्दों का प्रयोग नहीं खलता है, जितना अंग्रेजी शब्दों का। (4) चौथी बात उपन्यास को कम आकर्षित करने वाली यह है कि जैन सिद्धान्तों का विवेचन उपन्यासकार ने प्रत्यक्षतः किया है, जो सामान्य और जैनेतर पाठकों को ऊबाते हैं। लेखक का मुख्य प्रयोजन धार्मिक वातावरण, विचार व दर्शन का प्रसार ही है, यह स्वीकार होने पर भी यदि कलात्मक ढंग, सुग्राह्य कथावस्तु के साथ स्वाभाविक ढंग से होता तो विशेष ग्राह्य हो पाता। इनके अतिरिक्त एक बात यह भी उल्लेखनीय है कि यदि लेखक ने जैन जगत् की किसी प्रसिद्ध व्यक्ति या ऐतिहासिक कथा वस्तु लेकर रचना की होती तो अपने उद्देश्य में अधिक सफलता प्राप्त हो सकती या आधुनिक समाज से कथा का बीज या वातावरण ग्रहण किया होता तो स्वाभाविक रूप एवं सरलता रहती। इस उपन्यास में कथा वस्तु की रोचकता, जिज्ञासा तथा प्रवाह बनाये रखने के लिए आगे का प्रसंग पहले कहकर बाद में विस्तृत रोचक वर्णन उपन्यासकार ने किया है। लेखक की यह लेखन-पटुता ही मानी जायेगी कि जैन विचारधारा का पृष्ठ-पृष्ठ पर दिग्दर्शन कराने पर भी कथा का प्रवाह-क्रम कहीं टूटता नहीं है, या रस-प्राप्ति में कहीं बाधा नहीं खड़ी होती। सूक्ष्म वैशिष्ट्य एवं पांडित्य पूर्ण इस रचना में लेखक ने कला-कौशल से पाठक की जिज्ञासा को अंत तक निभाये रखी है। यहाँ केवल मनोरंजक कथा ही नहीं है, कन्तु शिक्षा रूपी रत्नों का भंडार है।' ___प्रस्तुत उपन्यास की कथा वस्तु का विवेचन अन्यत्र किया जा चुका है। केवल एक तथ्य उल्लेखनीय है कि उपन्यासकार ने कथा वस्तु को रोचक ने का पूर्ण प्रयास किया है और महद अंश में सफल भी हुए हैं। केवल वां, ग्यारहवां और तेरहवां सर्ग धार्मिक चर्चा से पूर्ण होने से कथा क्रम में क बनते हैं। तात्त्विक भूमि का पर प्रस्तुत उपन्यास का अनुशीलन वांछित रष्टव्य-सुशीला-उपन्यास, मूलचन्द कापड़िया का प्रकाशकीय कथन, पृ. 6.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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