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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य बाला के समान निराभरणा ही है। इसमें नागरिक - रमणियों के समान सुन्दर और उपयुक्त अलंकारों का समावेश किया गया है। ' 420 आधुनिक हिन्दी जैन कविता में अलंकारों का सन्निवेश सहज और अनुप्रास ही है। जैन कवि न जीवन में अलंकरण को महत्व देते हैं और न काव्य में ही । किन्तु प्रकृत रूप में अलंकरण जैसे जीवन को रम्य बना देता है, वैसे ही काव्य भी रमणीय हो जाता है। आधुनिक हिन्दी जैन कविता में अलंकारों की अधिक संभावना महाकाव्य में हो सकती है। मुक्तक काव्य तो प्रायः नीति, उपदेश तथा चरित्र-निर्माण की दीक्षा देने वाले अनलंकृत ही हैं। महाकाव्य के उपरान्त खण्डकाव्य में भी हम इन्हें देख सकते हैं। सर्वप्रथम हम अनूप शर्मा के 'वर्धमान' काव्य में प्रयुक्त अलंकारों का विवेचन करेंगे। कवि अनूप शर्मा ने 'वर्धमान' महाकाव्य में दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है। शब्दालंकार में श्लेष, अनुप्रास व यमक तथा अर्थालंकार में उपमा, रूपक व उत्प्रेक्षा कवि के अत्यंत प्रिय अलंकार रहे हैं। 'वर्धमान' पर संस्कृत काव्य-ग्रंथों का गहरा प्रभाव अलंकार - योजना में भी देखा जा सकता है। फिर भी कहीं-कहीं नूतन उर्वर कल्पना - शक्ति का परिचय मिलता है । ' महाकाव्यों के अनुरूप 'वर्धमान' में वर्णन - सौंदर्य, पद- लालित्य, अर्थ- गांभीर्य, रस-निर्झर और काव्य-कौशल सभी कुछ है । पद-पद पर रूपकों, उपमाओं और अन्य अलंकारों की छटा दर्शनीय है। इतना श्रमसाध्य कौशल होने पर भी संगति और प्रवाह की रक्षा का प्रयत्न हैं। भगवान महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ की राजसभा सरस्वती का प्रतीक है। 2 सुवर्ण-वर्णा, ललिता, मनोहरा, सभा लसी यों पद - न्यास - शालिनी । विरंचि सिद्धार्थ - युता लखी गई, शरीरिणी ज्यों अपरा सरस्वती ॥ उपर्युक्त अलंकार में श्लेष के बल पर सौंदर्य उत्पन्न किया गया है। संस्कृत परंपरा की चमत्कारमय श्लेष - यमक योजना का मोह कवि से नहीं छूट पाया है। इसी कारण 'वर्धमान' रसवादी काव्य की अपेक्षा चमत्कारवादी विशेष बन गया है। लेकिन कवि ने जहाँ सादृश्यमूलक अलंकारों की योजना की है, वहाँ काव्य सुन्दर बन पड़ा है। त्रिशाल के सौंदर्य-वर्णन में कवि ने रूपक द्वारा चित्र प्रस्तुत किया है - सरोज - सा वस्त्र, सुनेत्र मीन- से, सिवार से केश, सुकंठ कम्बु- सा । 1. डा० नेमिचन्द्र जैन - हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, पृ० 163. 2. श्रीयुत लक्ष्मीचन्द्र जैन- 'वर्धमान' आमुख, पृ. 4.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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