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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य है । विश्व को सही अर्थ में तोलने की उसकी दृष्टि वेदान्त, सांख्य, बौद्ध और अन्य दार्शनिक धाराओं से भिन्न होते हुए भी किसी का भी अनादर या तिरस्कार नहीं करता । अन्य विचारधारा के अच्छे तत्वों को ग्रहण कर उन्हें समझने की तथा अपने अच्छे तत्वों को समझाने की जैन धर्म में सदैव चेष्टा की जाती है और यही स्याद्वाद की भूमिका है। जैन दर्शन यही स्वीकार करता है कि विश्व की अनेकता में एकता का मूल दर्शन छिपा है। इसलिए उसका दृष्टिकोण न पूर्णतः अद्वैतवादी है, न द्वैतवादी । जैन मुनि नथमल जी स्याद्वाद की परिभाषा करते हुए लिखते हैं कि - ' भेद में अभेद और अभेद में भेद का स्वीकार स्याद्वाद का एक अंग है । + + +++ भगवान महावीर की अनेकान्त दृष्टि और स्याद्वादी निरूपण शैली का मुख्य प्रयोजन है, सत्य के प्रति अन्याय करने की मनोवृत्ति का विसर्जन करना । स्याद्वाद एक अनुरोध है उन सबसे, जो सत्य को एकांगी दृष्टि से देखते हैं और आग्रह की भाषा में उसकी व्याख्या करते हैं।+++ एकiगिता सत्य को मान्य नहीं होती तो फिर किसी संप्रदाय को क्यों होना चाहिए ?' स्याद्वाद के सम्बन्ध में बहुत से विद्वानों ने अपने-अपने ग्रन्थों में विस्तार से लिखा है, लेकिन यहां उनके लिए न आवश्यकता है न औचित्य । केवल एक या दो प्रमुख विचारधारा जान लेने से भी स्याद्वाद की विशेषता स्पष्ट हो जाती है। 'हिन्दी विश्वकोष' में लिखा गया है कि-' अनेकान्तवाद जैन धर्म का मूल्य सिद्धान्त है। इसे अहिंसा का ही व्यापक रूप समझना चाहिए । राग द्वैष जन्य संस्कारों के वशीभूत न होकर दूसरे के दृष्टि-बिन्दु को ठीक-ठीक समझने का नाम अनेकान्तवाद है। इससे मनुष्य सत्य के निकट पहुँच सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी भी मत या सिद्धान्त को पूर्ण रूप से सत्य नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक मत अपनी अपनी परिस्थितियों और समस्याओं को लेकर उद्भूत हुआ है। अतएव प्रत्येक मत को अपनी-अपनी विशेषताएं है। अनेकान्तवादी इन सबका समन्वय करके आगे बढ़ता है। आगे चलकर जब इस सिद्धान्त को तार्किक रूप दिया गया तो वह 'स्याद्वाद' के नाम से कहा जाने लगा। 12 20 जैन दर्शन में अनेकता के बीच एकता और एकता के भीतर बहुलता का समन्वय स्वीकृत है, चाहे वह धर्म, समाज या व्यक्ति किसी से भी संबधित क्यों न हो। प्रसिद्ध विद्वान डा० हीरालाल जैन का यह कथन इस संदर्भ में सर्वथा उपयुक्त है कि 'भिन्न-भिन्न धर्मों के विरोधी मतों और सिद्धान्तों के बीच यह 1. आ. मुनि नथमल जी : बीज और बरगद - पृ० 10, 19. 2. हिन्दी विश्वकोष - भाग - 5, पृ० 47.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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