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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य का प्रयोग हुआ है। शान्त रसपूर्ण इस खण्ड काव्य में भाषा का योगदान भी महत्वपूर्ण है। शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग प्रशंसनीय है। 'विराग' काव्य की सफलता उसकी हार्दिक अनुभूतियों के साथ सरल, भावपूर्ण व आकर्षक भाषा-शैली पर ही निर्भर करती है। कुमार वर्धमान को विवाह के लिए राजी करने के लिए माता त्रिशला ने अथक प्रयास किया, तथापि वर्धमान को अनुकूल बनाने में सफल न हो पाने पर माता त्रिशला के मुख से अत्यन्त मार्मिक शब्दों की व्यंजना कवि ने करवाई है, जो पाठक के हृदय को भी द्रवित कर देती है। उदाहरण के लिए 410 यदि काश! कहीं विधि तुमको, अन्तस्तल माँ का देता । मेरा ममत्व तो तुम पर, द्रुत विजय प्राप्त कर लेता ।' इसी प्रकार कुमार की आध्यात्मिक, सामाजिक, अहिंसक विचारधारा को भी कवि ने सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया है। भाषा के लाघव का परिचय दिया :--यथा बन गई सम्यक अब लो, मदिरा के प्याले पीना। जीने के लिए न खाना, पर खाने को ही जीनां । भाषा की व्यंगात्मक शक्ति का परिचय भी उपर्युक्त दृष्टान्त में प्राप्त होता है। प्रश्नात्मक भाषा - शैली में विचारों की सरलता द्रष्टव्य है इस चिर अशांति का जग से, किस दिन विलोप अब होगा ? निर्दोष मूक इन पशुओं को अभय प्राप्त कब होगा ? नारी सौंदर्य के वर्णन में भाषा की कोमलता सराहनीय है अवगुंठन तब हट जाने, से स्वर्ण-हार यों चमके ज्यों पावस ऋतु के श्यामल मेघों में विद्युत दमके । तब महिषी देख रही थी, मोहक मुख मंजु मुकुर में, पीछे से देख छटा से, नृप मुदित हुए निज उर में। कहीं-कहीं सरल भाषा भी कितनी हृदय ग्राह्य तथा बिम्ब प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है - कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं 1. देखिए - विराग - सर्ग - 1, पृ० 23. 2. देखिए - विराग - सर्ग - 3, पृ० 39. 3. द्रष्टव्य- धन्यकुमार जैन -' विराग' सर्ग - 3, पृ० 34.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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