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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-काव्य का कला-सौष्ठव 403 भाषा-वैशिष्ट्य हम उसके भिन्न-भिन्न तीन काव्य-स्वरूपों के परिप्रेक्ष्य में ही देखने की चेष्टा करेंगे। महाकाव्य व खण्डकाव्य में प्रयुक्त भाषा को देखने के उपरान्त आधुनिक युग में उपलब्ध मुक्तक रचनाओं में भाषा के रूप का विवेचन करेंगे। आधुनिक युग में हिन्दी जैन साहित्य के अंतर्गत गद्य की तुलना में प्रबंध काव्य की उपलब्धि परिमित है। उपलब्ध महाकाव्य 'वर्धमान' एवं 'वीरायण' दोनों में हम भिन्न-भिन्न भाषा-शैली पाते हैं। जैन काव्यों में जहाँ एक ओर संस्कृत-गर्भित क्लिष्ट भाषा प्राप्त होती है, वहाँ दूसरी ओर सरल कहीं-कहीं ग्रामीणता का स्पर्श करती हुई-भाषा भी देख सकते हैं। अनूप शर्मा के 'वर्धमान' जैसे महाकाव्य में संस्कृत शब्दावली तथा संस्कृत क्रियाओं तक का प्रभाव विद्यमान है। कहीं-कहीं 'क्यति', 'नमामि' जैसे तिङन्त प्रयोग भी मिलते हैं। अतः दुरुहता का आ जाना स्वाभाविक है। कहीं-कहीं तो पूरा छंद बिना क्रिया के भी चलता है। यत्र-तत्र पांडित्य-प्रदर्शन की भावना के कारण भी अप्रचलित शब्दों का प्रयोग किया गया है। 'वर्धमान' में ऐसे शब्दों की कमी नहीं है-यथा-वैधस, विशिष्ट, दिवोकसी, चतुष्क, पिशक, शशाद, प्लव, अंसुभत्पमला, वरेणुका, हरिमंथ, परिक्षाम, चिभिक कृपीटयोनि, कीलाम, लासिक, व कमन्थ आदि। कवि ने वैदुष्य-प्रदर्शन की दृष्टि से अथवा चमत्कार उत्पन्न करने की दृष्टि से ऐसे शब्दों का प्रयोग किया होगा। किन्तु इसका परिणाम उल्टा ही निकला है। भाषा मार्मिक, ग्राह्य एवं प्रभावशाली उस कोटि तक नहीं हो पाती है, वहाँ तक उसे होना चाहिए थी। उपर्युक्त क्लिष्ट व अपरिचित शब्द प्रयोगों के बावजूद भी जहां प्रश्नोत्तर शैली का कवि ने प्रयोग किया है, वहाँ भाषा अवश्य सरल है। आध्यात्मिक, दार्शनिक तत्त्वों की चर्चा के समय कवि ने सरल भाषा का प्रयोग किया है और संभवतः 'वर्धमान' के रचनाकार की यही सबसे बड़ी सफलता भी मानी जायेगी। वैसे तो संस्कृत शैली पर काव्य लिखा गया होने से दीर्घ वृत्त एवं कठिन शब्द-बाहुल्य तो रहेगा ही, लेकिन दार्शनिक विचारों का सरल भाषा में विनियोजन आधुनिक हिन्दी जैन महाकाव्य का सफल प्रयोग कहा जायेगा। दार्शनिक ग्रंथों में इस शैली को 'पूर्व पक्ष' और 'उत्तर पक्ष' कहते हैं। जिससे दार्शनिक विचारधारा आसानी से सुस्पष्ट हो सकती है, ऐसा एक उदाहरण दृष्टव्य है 1. द्रष्टव्य-अनूप शर्मा-'वर्धमान', पृ. 15.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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