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________________ - गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु आधुनिक हिन्दी - जैन 393 सेफ में रख लेने का ही एक मौलिक प्रयत्न है और यह प्रयत्न अपनी जगह इतना सफल रहा है कि 'आज' उसका मान करने में चूक भी जायें, तो 'कल' उसका सम्मान कर स्वयं अपने को कृतार्थ मानेगा। + + + यह पुस्तक, यह जलती मशाल, इस चयन का महत्त्व बताती, उसक तरीका सीखाती और नये जागरण के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में साधनों को हांक लगाती है। मेरा विश्वास है कि हाक कण्ठ की नहीं, हृदय की है और कानों तक ही नहीं, दिलों की गुफाओं तक गूँजेगी। + + + यहाँ जो लेख है, वे जीते जागते लेख हैं, 'वकालत' नहीं, जनता की अदालत में 'असालतन' आने वालों में है। वे न उनकी कलम के आंसू हैं, जो पैसे लेकर स्यामा करते हैं और न उनके ओठों की मुस्कुराहट, जो दिल के सोते-सोते भी ओठों से हंसना जानते हैं। वे उनकी कलम के करिश्मे हैं, जो अपने ही दुःख में रोते और अपने ही दुःख में हंसते हैं। यही कारण है कि भीतर के पन्नों की तस्वीरों में रंगों की चमक भले ही कहीं हल्की हो, पर भावनाओं की दमक हर जगह झलकी हुई है। + + + और अब तक इस चमन के माली श्री गोयलीय के लिए क्या कहूँ, जो सदा साधनों की उपेक्षा कर, साधना के ही पीछे पागल रहा और जिसके निर्माण में स्वयं ब्रह्मा ने पक्षपात करके शायर का दिल, सिंह का साहस और सपूत की सेवा वृत्ति को एक ही जगह केन्द्रित कर दिया।" इसके संपादक महोदय गोयलीय जी उस बृहद् संस्मरण के सम्बंध में प्रकाश डालते हुए लिखते हैं- 'हमारे यहाँ तीर्थंकरों का प्रामाणिक जीवन चरित्र नहीं आचार्यों के कार्य-कलापों की तालिका नहीं, जैन संघ के लोकोपयोगी कार्य की सूची नहीं, जैन सम्राटों, सेनानायकों, मंत्रियों के पराक्रम और शासन प्रणाली का कोई लेखा नहीं, साहित्यिकों और कवियों का कोई परिचय नहीं। और तो और हमारी आंखों के सामने कल, परसों, गुजरने वाली विभूतियों का कहीं उल्लेख नहीं और जो दो चार बड़े-बूढ़े मौत की चौखट पर खड़े हैं, इनसे भी हमने उनके अनुभवों को नहीं सुना है और शायद मस्तिष्क में दस - पाँच पीढ़ी में जन्म लेकर मर जाने वालों तक के लिए परिचय लिखने का उत्साह हमारे समाज को न होगा। प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आँखों के सामने निरन्तर गुजर रहा है, उसे ही यदि हम बटोर कर रख सकें, तो शायद इसी बटोरपन में कुछ जवाहर पायें जो आगे की पीढ़ी के हाथ लग जायें। इसी दृष्टि से - ' बीती ताकि विसार दे, आगे की सुधि लेय।' नीति के अनुसार संस्मरण लिखने का डरते-डरते 1. जैन जागरण के अग्रदूत - कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', यह एक जलती मशाल है, शीर्षकस्थ, पृ० 13.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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