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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य ख्याति प्राप्त हैं कि उनका जीवन अज्ञात न रहकर सर्वविदित है। जैन समाज पर उन्होंने काफी उपकार किये हैं। उन्होंने अपनी इस आत्मकथा में बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को संपूर्ण ईमानदारी के साथ क्रमबद्धता से पिरोया है। इसमें सामाजिक कुरीतियों का उन्होंने सुन्दर वर्णन किया है। रोचकता एवं सरसता का गुण पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। ‘यद्यपि लेखक ने आत्मकथा का नाम 'अज्ञात जीवन' रखा है, किन्तु लेखक का जीवन समाज से अज्ञात नहीं है। समाज से सम्मान और आदर प्राप्त करने पर भी वह अपने को अज्ञात ही रखना अधिक पसंद करता है, यही उसकी यह सज्जनता की सबसे बड़ी पहचान है। इस आत्मकथा में सामाजिक कुरीतियों का पूरा विवरण मिलता है। भाषा संयत, सरल और परिवार्जित है । अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों को भी यथास्थान रखा गया है। ' 390 संस्मरण : आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में संस्मरण का जो ग्रन्थ प्राप्त होता है, वह किसी एक व्यक्ति के विषय में किसी एक ही लेखक द्वारा न लिखकर जैन धर्म, समाज व साहित्य के अनेक तेजस्वी विद्वान एवं कीर्ति स्तंभ समान साहित्यकारों और विद्वानों के संस्मरण, प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा लिखे गये हैं। जिसका नाम है 'जैन जागरण के अग्रदूत'। इस महान ग्रंथ के प्रमुख संपादक महोदय हैं प्रसिद्ध विद्वान श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय। वैसे अभिनंदन ग्रन्थ में भी संस्मरणों, मुलाकातों आदि को संगृहीत किया जाता है। साहित्य, समाज में प्रसिद्ध महानुभावों के प्रवेश को ऐसे ग्रंथों में विविध विद्वानों के द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, जो सर्वथा उचित ही होता है। ऐसे संस्मरणों को पढ़कर पाठक को कुछ जानने के उपरान्त इस बोध का भी परिचय - अनुभव - होता है । महान व्यक्तियों के संस्मरण से हम अपने जीवन को गंभीर बनाकर जीवन की सार्थकता के विषय में भी प्रयत्नशील रहने की प्रेरणा पाते हैं, रोचक स्मृतियों की घटना से आनंद तो प्राप्त होता ही है, हम उन पवित्र स्मृतियों से धन्य व पावन भी बनते हैं। आलंकारिक शैली में संस्मरण का महत्व प्रदर्शित करते हुए डा० शास्त्री लिखते हैं - यह मानी हुई बात है कि महान व्यक्तियों के पुण्य संस्मरण जीवन की सूनी और नीरस घड़ियों में मधु घोल कर उन्हें सरस बना देते हैं। मानव - हृदय, जो सतत् वीणा के समान भावनाओं की झंकार से झंकृत होता रहता है, पुण्य संस्मरणों से पूत 1. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 141. प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। 2.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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