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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 389 सुन्दर निराकरण किया है-'जिस कार्य से आकुलता बढ़ जावे, उसे मत करो। कोई भी काम करो, समता से करो।' पूज्या चिरोंजीबाई के ये शब्द लेखक को प्रेरणा देते रहते थे। बाबा शिवलाल जी भी व्रत के औचित्य पर ध्यान देते हुए कहते हैं-शरीर को सर्वथा निर्बल मत बनाओ। व्रत-उपवास करो अवश्य, परन्तु जिसमें विशेष आकुलता हो जाय ऐसा शक्ति का उल्लंघन कर व्रत मत करो। व्रत का तात्पर्य तो आकुलता दूर करना है। आत्मकथा की भाषा इतनी आकर्षक एवं सरल है कि सामान्य पाठक भी आसानी से आत्मसात कर सकता है। उनकी भाषा शैली में छोटे-छोटे वाक्यों की सुगठितता एवं अपूर्व छटा है। प्रवाहबद्ध भाषा में धर्म के तत्त्वों की चर्चा भी कुशलता से कर लेते हैं। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री उनकी विशेषता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि-इस साढ़े तीन हाथ के मिट्टी के पुतले का व्यक्तित्व आज गजब ढा रहा है। समस्त मानवीय गुणों से विभूषित इस महामानव में मूक परोपकार की अभिव्यंजना, साधना और त्याग की अभिव्यक्ति एवं बहुमुखी प्रतिभा विद्वता का संयोग जिस प्रकार से पाया है, शायद ही अन्यत्र मिले। इतनी सरल प्रकृति, गंभीर मुद्रा, ठोस ज्ञान, अटल श्रद्धादि गुणों के द्वारा लोग सहज ही इनके भक्त बन जाते हैं। जो भी इनके संपर्क में आया, वह अन्तरंग में मायाशून्यता, सत्यनिष्ठा, प्रकाण्ड पांडित्य, विद्वता के साथ चारित्र्य, प्रभावक वाणी, परिणामों में अनुपम शांति एवं आत्मिक और शारीरिक विद्वता आदि गुण राशि से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इसके अतिरिक्त अज्ञान-तिमिरान्ध जैन समाज का ज्ञान-लोचन उन्मिलित करके लोकोतर उपकार करने का श्रेय यदि किसी को है तो श्रद्धेय वर्णी जी को। पूज्य वर्णी जी का जीवन जैन समाज के लिए सचमुच में एक सूर्य है। वे मुमुक्षु हैं, साधक हैं और हैं स्वयं बुद्ध। उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखकर जैन समाज का नहीं, अपितु मानव-समाज का बड़ा उपकार किया है। अज्ञात जीवनः दूसरी आत्मकथा बाबू अजीतप्रसाद की 'अज्ञात जीवन' है, जो आजकल अनुपलब्ध है। आत्मकथा का नाम ही उपन्यास जैसा है कि पाठक को एकाएक अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ है। अजीत प्रसाद जी जैन समाज में इतने 1. वर्णी जी : मेरी जीवन गाथा, पृ॰ 170. 2. डा. नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ॰ 138. 3. प्रकाशक-रायसाहब रामदयाल आरवला, प्रयाग।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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