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________________ 384 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य 8. भगवान महावीर एक अनुशीलन देवेन्द्र मुनि 9. भगवान महावीर का आदर्शजीवन पं० सुखलाल जी 10. भगवान महावीर पं० दलसुखभाई मालवणिया 11. भगवान महावीर का आदर्श जीवन मुनि चौथमल जी 12. श्री पारसनाथ चरित्र रामलाल दोला जी इन सभी में तीर्थंकरों का जीवन राजवंश में जन्में राजकुमार की श्रेणी से क्रमर्श: त्याग, वैराग्य, कष्ट सहिष्णुता, दीर्घ तपस्या, इन्द्रियदमन व मनोनिग्रह के द्वारा पूर्व जन्मों के कर्मों की निर्जरा समताभाव से कर 'केवल ज्ञान' की प्राप्ति के बाद मानव कल्याण हेतु उपदेश से प्रकाशित है। उनका मन, वचन व काया की अहिंसा, करुणा, प्रेम व सत्य के सिद्धान्तों का जनता में प्रचारप्रसार जीवन-ध्येय रहा है। तीर्थंकरों का उद्देश्य आत्म विकास के फलस्वरूप 'केवल ज्ञान' की संप्राप्ति से अनंतर प्राणी मात्र के कल्याण के लिए निरन्तर सदुपदेश देकर जीवन की सार्थकता का रास्ता प्रशस्त करने में रहता है। अतः स्वाभाविक है कि इनमें धार्मिक विचारधारा बीच-बीच में रहती है, जैन धर्म के विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली का आ जाना भी सहज है, लेकिन इससे किसी प्रकार के पाठकों को असुविधा पैदा नहीं होती। अन्य तीर्थंकरों की जीवनी के सम्बंध में वाद-विवाद या विरोध नहीं उठता, लेकिन भगवान महावीर के जीवन, दीक्षा सम्बंध में जैन संप्रदाय में दो प्रमुख संप्रदायों के कारण अन्तर आ जाता है। क्योंकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय वाले महावीर को विवाहित-पत्नी यशोदा-व पुत्री प्रियदर्शना, दामाद जामालिकुमार स्वीकारते हैं एवं दीक्षा के बाद श्वेत वस्त्र धारण किये हुए स्वीकारते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय वाले महावीर को अविवाहित एवं दिगंबर स्थिति में ही विचरण करते हुए मानते हैं। अन्य दार्शनिक सिद्धान्तों में भी छोटे-मोटे अन्तर इन दो प्रमुख संप्रदायों में प्रवर्तित होने से महावीर की जीवनी में अन्तर आ जाना स्वाभाविक है, क्योंकि लेखक जिस संप्रदाय में विश्वास करते हैं, उसी मान्यता, विश्वास के मुताबिक जीवनी लिखेंगे। जीवनी के अनन्तर आत्मकथा को देखा जाय तो आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में अत्यन्त कम-केवल दो-आत्मकथा उपलब्ध होती है। शायद अधिक लिखी गई हो और मुझे प्राप्त न हुई हो ऐसी संभावना भी हो सकती है, लेकिन जहाँ तक मेरी कोशिश रही है, वहाँ तक श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी की 'मेरी जीवन-गाथा' एवं श्री अजितप्रसाद जैन की 'अज्ञात-जीवन' आत्मकथा प्राप्त हो सकी है। दोनों को ही उत्कृष्ट कोटि की आत्मकथा कही जायेगी, जिनसे हिन्दी
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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