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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 367 गौरव रूप है। अकलंक ग्रन्थत्रय की प्रस्तावना एवं श्रुतसागरीवृत्ति की प्रस्तावना के सिवा भी आपके अनेक फुटकर निबंध प्रकाशित हुए हैं। इनके निबंधों में मौलिकता तथा सिद्धान्तों का सुंदर मार्मिक विवेचन प्राप्त होता है। पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ भी प्रमुख दार्शनिक निबंधकार है, जिनके आचार-विषयक अनेक निबंध सरल शैली में प्रकाशित हो चुके हैं। पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य प्रसिद्ध दार्शनिक निबंधकार हैं। दार्शनिक सिद्धान्त जैसे कि-स्याद्वाद, नय प्रमाण, कर्म आदि पर सुंदर विवेचनात्मक निबंध प्रकाशित हैं, जिनकी भाषा व्याकरण-सम्मत और गंभीर है। भाषा की सरलता गंभीर विचारों को व्यक्त करने में आपको सहायक हुई है। आपने सामाजिक समस्याओं पर भी सुंदर निबंध लिखे हैं। उच्च केटि के विचारक तथा सुधारक होने के कारण इन निबंधों में प्राचीन रूढ़ियों के प्रति अनास्था एवं विरोध की भावना अभिव्यक्त होती है। पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री भी दार्शनिक निबंधकार हैं। द्रव्य संग्रह की विभेद वृद्धि में अनेक दार्शनिक पहलुओं पर विचार किया गया है। दार्शनिक निबंधों के अतिरिक्त अन्वेषणात्मक एवं भौगोलिक निबंध भी आपने काफी लिखे हैं। आपके निबंधों की शैली तर्कपूर्ण तथा भाषा में कहीं कहीं पंडिताऊपन ___ पं० जगमोहन लाल जी सिद्धान्त शास्त्री ने भी दार्शनिक | आचार सम्बंधी निबंध लिखे हैं। विषयक को प्रतिपादित करने की आपकी शैली सरल व तर्क युक्त है। भाषा परिमार्जित और संयत होने के कारण नीरस विषय को भी रोचक ढंग से समझाने की विशिष्टता निहित है। सामाजिक और साहित्यिक निबंध : साहित्यिक व सामाजिक निबंध लिखनेवालों में सर्वश्री प्रेमी जी, कामताप्रसाद जैन, प्रो. राजकुमार साहित्याचार्य, श्री अगरचन्द जी नाहटा, पन्नालाल जैन, ऋषभदास रांका, श्री जमनालाल, श्री मूलचन्द 'वत्सल', पं. नाथूराम जी प्रभृति विद्वान उल्लेखनीय हैं। पंनाथूराम प्रेमी जी ने अपने 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' में अनेक कवियों की जीवनी के विषय में अन्वेषणात्मक शैली में लिखा है। यह वास्तव में शुद्ध इतिहास न होकर संशोधनात्मक साहित्यिक लेखों का संग्रह है, जो आज तक विद्वानों एवं जैन साहित्य के लिए पथ-प्रदर्शन बना है। प्रेमी जी की तरह बाबू कामताप्रसाद जी ने भी 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास'
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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