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________________ 360 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य संस्कृत व फारसी के मोह और आग्रह से रहित वे ऐसी सुबोध हिन्दी में लिखते हैं, जिसके विषय में किसी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। इन सब गुणों से पंडित जी का अपना 'युगवीर' उपनाम, जो उनके पूरे नाम का ही सारगर्भित संक्षेप है, पूर्णतः सार्थक सिद्ध हुआ पाया जाता है।' उन्होंने जैन धर्म व साहित्य के अतिरिक्त राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि विषयों पर भी निबंध लिखे हैं। पं. नाथूराम जी के अनन्तर इतनी विपुल संख्या में ऐतिहासिक, दार्शनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, गवेषणात्मक निबंध लिखने में उनका स्थान आता है। निबंधकार के साथ-साथ वे सफल आलोचक भी हैं। 'तत्वार्थ विचार' उनका आलोचनात्मक ग्रन्थ है। आलोचक के रूप में वे निष्पक्ष एवं सत्यभाषी हैं। आपकी आलोचनाएँ सफल और खरी होती हैं। 'ग्रन्थ-परीक्षा' आपका एक आलोचनात्मक बृहद ग्रंथ है, जो कई भागों में प्रकाशित हुआ है। निबंधकार के रूप में तो उच्च कोटि के विद्वान् एवं शास्त्रीय प्रमाणों के पुरस्कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं ही, निर्भीक निष्पक्षी, प्रगाढ़ अध्ययनशील सफल आलोचक का रूप भी कम प्रसिद्ध नहीं है। बाबू कामता प्रसाद जैन का भी विशुद्ध इतिहास निर्माताओं में महत्वपूर्ण स्थान है। आपने हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' लिखने में काफी मेहनत उठाई है। इसके अलावा भी अनेक निबंधों की रचना की है, जिनमें राजाओं के वंशों, स्थानों, गोत्रों में संदर्भ में महत्वपूर्ण गवेषणाएँ की है। गद्य साहित्य के विकास में प्रेमी जी की तरह आपके निबंधों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। निबंधों की परिमाण-बहुलता की दृष्टि से आपका स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भिन्न-भिन्न जैन पत्र-पत्रिकाओं में आपके प्रकाशित निबंध पुस्तकाकार में प्रकाशित हो चुके हैं। तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों और जैनधर्मी राजाओं के विषय में आपने काफी अनुसंधान किया है। 'गंगराज वंश में जैन धर्म', मुसलमान राज्यकाल में जैन धर्म, वेराट या विराटपुर, काम्पिल्य, श्रवणबेलगोल के शिलालेख, जैन साहित्य में श्रीलंका, चीन देश और जैन धर्म, ईरान में जैन धर्म, प्रभृति निबंध महत्वपूर्ण है, जिनमें लेखक की व्यवस्थितता के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की श्रृंखला का गठित रूप विद्यमान है। आपके कतिपय ऐतिहासिक निबंधों में ऐतिहासिक त्रुटियाँ अन्वेषक विद्वान पाते हैं, फिर भी सामग्री का संकलन एवं अनुसंधान की दृष्टि से इनका महत्वपूर्ण स्थान है। ऐतिहासिक निबंधकारों में पं० भुजबली शास्त्री का भी महत्वपूर्ण स्थान 1. डा- हीरालाल जैन, नये युग की झलक, प्रस्तावना में से, पृ० 14. 2. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ. 123.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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