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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 357 कहा जायेगा। निबंध के लिए विषयों का क्षेत्र अपरिमित रहने से विषयों के मुताबिक निबंधों के प्रकार भी अनेक प्रकार से यथा वर्णनात्मक, विचारात्मक, भावात्मक, गवेषणात्मक, आलोचनात्मक, मनोविश्लेषणात्मक आदि हो सकते हैं। जैन साहित्य में यद्यपि विपुल संख्या में निबंधों की रचना हुई है, फिर भी उत्कृष्ट कोटि के मौलिक निबंधकारों की संख्या अत्य कही जायेगी। प्रमुख प्रतिभासंपन्न निबंधकारों में सर्वश्री पं. नाथूराम प्रेमी, युगवीरजी, पं. सुखलाल संघवी, जिनविजय जी महाराज, मुनि कल्याणविजय जी, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैनेन्द्र जैन, कामताप्रसाद जैन, नेमिचन्द्र शास्त्री, अगरचन्द जी नाहटा, डा० अ० ज० उपाध्ये, डा. हीरालाल जैन आदि का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। इनके अलावा भी अनेक अच्छे निबंधकारों की सेवा जैन साहित्य को उपलब्ध हो सकी है। अन्य विधाओं की अपेक्षा इस विधा को बहुश्रुत पंडितों एवं विद्वान् साहित्यकारों की लेखनी से समर्थ-समृद्ध होने का गौरव प्राप्त हुआ है। इन निबंधों को ऐतिहासिक, पुरातत्व, आचारात्मक, दार्शनिक, साहित्यिक, सामाजिक और वैज्ञानिक इन सात विभागों में विभक्त किया जा सकता है। वैसे विषयों की दृष्टि से जैन निबंध साहित्य और भी कई भागों में बांटा जा सकता है, लेकिन इनका वर्गीकरण करने के लिए उक्त विभाग ही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। ऐतिहासिक : ऐतिहासिक निबंधों की संख्या सर्वाधिक पाई जाती है। इस प्रकार के निबंध लिखने वालों में श्रद्धेय प्रेमी जी का नाम सर्वप्रथम लिया जा सकता है। इनके अतिरिक्त युगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर', पं० सुखलाल संघवी, पं० कल्याणविजय जी, मुनि जिनविजय जी, कामताप्रसाद जैन, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, पं. भुजबली शास्त्री, प्रो० खुशाल चन्द्र गारावाला प्रभृति विद्वानों का योगदान उल्लेखनीय है। पं. नाथूराम 'प्रेमी' जी ने शुद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ न लिखकर जैनाचार्यों, जैन कवियों एवं अन्य साहित्य-निर्माताओं के विषय में अनगिनत शोधात्मक, परिचयात्मक निबन्ध लिखे हैं। प्रेमी जी ने अपनी मौलिक सूझ-बूझ, मार्मिक ज्ञान एवं गहन-अभ्यासअध्ययन से निबंध भंडार भरकर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी तीर्थ क्षेत्र, वंशगोत्र आदि के नामों के विकास व व्युत्पत्ति, आचार शास्त्र के नियमों का भाष्य तथा विविध संस्कारों का विश्लेषणात्मक, गवेषणापूर्ण शैली में निबंध लिखे हैं। अनेक जैन राजाओं की वंशावली, गोत्र, वंश परम्परादि का निरूपण भी उन्होंने एक जागृत शोधकर्ता
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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