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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
'हिन्दी विश्व कोश' में 'जैन' शब्द की इस प्रकार व्याख्या मिलती है'जैन' अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन' भगवान के अनुयायी। जैन मान्यता के अनुसार जैन धर्म अनादिकाल से चला आया है और अनन्तकाल तक चलता रहेगा। इस धर्म का प्रचार करने के लिए समय-समय पर अनेक तीर्थंकरों का आविर्भाव होता रहता है।' ___'जैन' व 'जिन' शब्द की व्युत्पत्ति एवं परिभाषा के संक्षिप्त विवेचन के उपरान्त यदि तीर्थंकर' शब्द पर भी विचार कर लिया जाय तो और भी अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि जैन धर्म में तीर्थंकरों ने अपने गूढ़ चिन्तन-मनन से जैन को गतिशील किया है तथा उसके तत्वों की स्थापना की है।
मुनि रत्न प्रभाश्री जी ने तीर्थंकर के 'केवल ज्ञान' पर जोर देते हुए लिखा है कि-"तीर्थंकर मन:पयार्यत्वः प्राप्त करने के बाद कर्मों के बंधनों से मुक्त होने से पहले 'केवल ज्ञान' प्राप्त करते हैं, अर्थात् समय, स्थल और पदार्थ को मर्यादा के बाहर देख-परख और सोच सकते हैं। तब से वे प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं, जान सकते हैं।"
तीर्थंकर को 'वीतराग' भी कहा जाता है कि जिन्होंने 'रागद्वेष, लोभ, मोहमाया आदि सांसारिक कषायों से मुक्ति प्राप्त कर उन पर विजय प्राप्त किया है। जैन धर्म में तीर्थंकर की महानता के विषय में प्रकाश डालते हुए डा. हरीश शुक्ल लिखते हैं-"जैन मान्यतानुसार सिद्ध और तीर्थंकर इस मानवता के प्रस्थापक और विकासचक्र को गति देनेवाले हैं। स्वयं की मानवता का विकास करते हुए सिद्धि लाभ करने वाले सिद्ध है। और मानवता के साथ दूसरों में मानवता जगाकर उनका सच्चा मार्गदर्शन करानेवाले तीर्थंकर है। तीर्थंकर तीर्थों की प्रस्थापना कर प्राणीमात्र के प्रति अपने सद्भाव तथा सहानुभूतिमय प्रेम की वर्षा करते हुए मानवता के सार्वजनिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।'
प्रसिद्ध तत्त्वचिंतक डा. राधाकृष्णन् जी जितेन्द्रिय वीतराग तीर्थंकर के विषय में लिखते हैं कि- "It is also applicable to all those men and 1. द्रष्टव्य-हिन्दी विश्वकोश-बाल 5, पृ. 46.. 2. Heart of Jainism, P. 32 'Forward of fifteen previous 'Bhavs' Vol. I.
by Tatna prabhavi. 3. द्रष्टव्य-आ. श्री भद्रंकर विजयजी-श्रीधर्मासंग्रह-पृ. 4.... .4. द्रष्टव्य-हरीश शुक्ल-जैन गुर्जर कवियों की हिंन्दी कविता-पृ० 33 (प्रथम
खण्ड-विषय प्रवेश)।