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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 355 निरन्तर सतर्क रहते थे। नाटक संक्षिप्त है, फिर भी कथानक सारपूर्ण, गर्भित व रोचक है। जैन धर्म की अहिंसा, दया, ममता, एवं प्रेम पूर्ण व्यवहार की विचारधारा परोक्ष रूप से व्यक्त की गई है। संदेश प्रत्यक्ष न होकर संवाद के माध्यम से आने से नीरसता या बोझ नहीं लगता। भाषा में राजस्थानी भाषा का थोड़ा-बहुत प्रभाव दिखता है। बीच में आते गीत कथावस्तु और पात्र पर प्रकाश डालने वाले हैं। राजकुमार जैन भी कवि के उपरांत नाटककार के रूप में भी आधुनिक जैन साहित्य में महत्त्व स्थान रखते हैं। उन्होंने भी प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर से जैन धर्म व जगत की प्रसिद्ध स्त्री चन्दनबाला एवं सुरसुंदरी की कथा पर से 'सती सुर सुंदरी नाटक' और 'सती चन्दनबाला' नाटक की रचनाएं की हैं। सती चन्दनवाला में जैन धर्म की प्रसिद्ध प्रथम स्त्री आंबिका (साध्वी) चंदना की धर्मप्रियता, कष्ट-सहिष्णुता, त्याग-विराग एवं हृदय की कोमल वृत्तियों को व्यक्त करने वाली घटनाओं का राजकुमार जी ने सुंदर साहित्यिक भाषा शैली एवं आकर्षक कथोपकथनों में निरूपण किया है। उसी प्रकार 'सती सुरसुंदरी' में राजकुमारी सुरसुंदरी की ओजस्विता, पातिव्रत धर्म, सहनशीलता का भाववाही भाषा में चरित्रांकन किया है। इन दोनों विषयों पर कथा-साहित्य भी काफी उपलब्ध होता है। नारी के आदर्शात्मक चरित्रों को प्रस्तुत कर जैन साहित्यकार जैन समाज के नारी रत्नों का परिचय देकर नारी वर्ग को प्रेरणा देना भी चाहते इस प्रकार हिन्दी नाटक-साहित्य पर दृष्टिपात करने पर पायेंगे कि प्रायः नाटक अहिंसा धर्म की महत्ता चरितार्थ करने के उद्देश्य से लिखे गये हैं, जिनका आधार प्राचीन ग्रन्थ रहे हैं। इन नाटकों में हिन्दी नाटकों की तरह साज-सज्जा, मनोविश्लेषणात्मकता, भाषा शैली की विदग्धता, वातावरण का नियोजन आदि चाहे प्राप्त न हो लेकिन ये नाटक अभिनय को दृष्टिकोण में रखकर विशेषतः लिखे गये हैं। और उनकी भाषा शैली अत्यन्त सुबोध रही है। इनमें से थोड़े-बहुत नाटक तो अत्यन्त उच्च कोटि के हैं, एवं रोचकता का गुण भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। निबंध-साहित्य : आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में सबसे समृद्ध विधा निबंध साहित्य की रही है। उपन्यास, नाटक की तुलना में विविध विषयों पर अपरिमित निबंध विद्वानों के द्वारा लिखे गये हैं। इन निबंधों में सैद्धांतिक, विचारात्मक, आचारात्मक, दार्शनिक, गवेषणात्मक आदि विविध प्रकार के हैं। इन निबंधों की भाषा-शैली
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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