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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 333 साम्प्रदायिकता की हल्की-सी झलक भी नहीं दिखती। इनको मानव धर्मों की कहानियाँ भी हम कह सकते हैं। मानव-जीवन को संस्कार-सौरभ देने के प्रयास स्वरूप इन कथाओं का प्रणयन किया गया है, जिसके लिए श्री सत्यभक्त जी का प्रयत्न अवश्य स्तुत्य कहा जायेगा। इस संग्रह में स्थूलिभद्र, जामालिकुमार, कार्तिकेय आदि की सुंदर बोध प्रद कहानियाँ हैं। _ 'खिलती कलियाँ मुस्काते फूल'' देवेन्द्र जैन द्वारा लिखित आधुनिक युगीन मनोदशा के अनुरूप छोटी-छोटी, वार्तालाप, विचार विनिमय को व्यक्त करती कहानियों का सुंदर संग्रह है। इसमें मानव को उदारता, सहनशीलता, प्रेम, सत्य एवं अहिंसा की महत्ता का परिचय दिया गया है। प्रत्यक्ष उपदेश न लगकर रोचक व हृदयग्राही बन पड़ा है। स्वयं लेखक का इस विषय में कहना है कि-कथाएँ बुद्धिबर्द्धक विटामिन हैं 'खिलती कलियाँ, मुस्काते फूल' में वही पाठकों को प्रस्तुत किया जा रहा है। यदि प्रबुद्ध पाठकों को यह विटामिन पसंद आया तो शीघ्र ही इससे अधिक सुन्दर शक्तिबर्द्धन विटामिन प्रस्तुत किया जायेगा। इस प्रकार आधुनिक हिन्दी जैन कहानियों के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इसमें हिन्दी कहानी साहित्य की तरह मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति, बाहरी सजावट या शिल्पगत नूतनता, चमक, दमक, सामाजिक, राजकीय, व्यक्तिगत संघर्ष, व्यक्तिगत मूल्यों की स्थापना, नारी-पुरुष की यौनगत समस्या आदि का विश्लेषण प्राप्त होने की संभावना नहीं रहती। धार्मिक साहित्य होने से प्राचीन आगम ग्रन्थों पर से कथा वस्तुओं को ग्रहण कर नवीन भाषा-शैली में धार्मिक बोध के साथ कथाएँ लिखना जैन लेखकों का उद्देश्य रहना स्वाभाविक है। चाहे आधुनिक युगीन और कोई विशेषताएँ न हों तो भी रोचकता, जिज्ञासा व सरसता इन कथाओं में अवश्य निहित है। हिन्दी साहित्य को एक भिन्न प्रकार के कथा-साहित्य की भेंट करके उसकी समृद्धि में यत्किंचित योगदान देने का श्रेय नि:संदेह जैन साहित्य को देना चाहिए। नाटक: भारतवर्ष में नाटक परम्परा चिर प्राचीन है। नाटक-साहित्य संस्कृत साहित्य में विशाल परिमाण में उपलब्ध होता है। आधुनिक युग में नाट्यस्वरूप पाश्चात्य नाट्य साहित्य से विशेष प्रभावित हुआ है। हमारी प्राचीन परम्परागत पद्धति पर भी नाटकों का सृजन हुआ है। जब से मनुष्य में अनुकरण की प्रवृत्ति 1. प्रकाशक : त्रीतारक गुरु जैन ग्रन्थालय-पदराडा, उदयपुर। 2. देवेन्द्र जैन-खिलती कलियाँ, मुस्काते फूल, प्रस्तावना, पृ. 13.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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