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विषय-प्रवेश
बिना मानवीयता प्राप्त नहीं हो सकती। इस विचारधारा ने 'सामान्य' जन समाज को काफी हद तक प्रभावित किया।' मनुष्यत्व में ईश्वरत्व की स्थापना करनेवाले भगवान महावीर :
महावीर ने कितने वर्षों के तीव्र मनोमंथन के परिपाक स्वरूप अपनी उदार विचारधारा के द्वारा न केवल सामाजिक क्रांति उपस्थित कर सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित किया, बल्कि साथ ही ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर मानव की संपूर्ण स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार किया, क्योंकि न कोई किसी का दास है न कोई किसी का स्वामी। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर पूर्ण ज्योतिस्वरूप आत्मा का निवास है। इसलिए सभी आत्माएं स्वतंत्र है लेकिन कर्मों के कारण सभी के सुख-दु:ख की स्थिति भिन्न-भिन्न है। महावीर ने ही सर्वप्रथम मानव की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ उसकी सामाजिक समानता का समन्वय किया। प्रभु महावीर ने यही महामन्त्र दिया कि मानव स्वयं अपना मित्र-दुश्मन हैं। बंधन से मुक्त होना उसी के हाथ में है। बुरे कर्मों का त्याग कर सत्कर्मो के प्रति जीव की गति हो जाने से वेदना और दु:खो का क्षय स्वतः हो जाता है और फलस्वरूप मनुष्य शांति व सुख प्राप्त कर सकता है। इसके लिए मनुष्य को माया-मोह, राग-द्वेषादि से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। परिग्रहों को कम करके इन्द्रियों का यथाशक्य निग्रह (Control) करना पड़ता है। उन्होंने व्यक्ति की शक्ति के अनुसार व्यक्तिगत साधना के मार्ग से मोक्ष की सच्ची राह बताई। व्यक्ति की योग्यता को ही महावीर ने दृष्टि बिंदु में रखकर घोषित किया कि मानव अपने ही सद्-प्रयासों से उच्चतम विकास प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक आत्मा स्वकर्मो का नाश करके सिद्धलोक में सिद्ध पद की प्राप्ति की क्षमता रखता है, क्योंकि आत्मा तो स्वयं प्रकाशी ब्रह्म का अंश है। उस पर माया-मोह, राग-द्वेषादि के पड़े हुए रंगीन पर्दे को चीरने से वह परम प्रकाश मनुष्य के हृदय और मस्तिष्क में फैल जाता है और मनुष्य दिव्य गति को प्राप्त कर सकता है। मनुष्यत्व में हर संपूर्णता का तत्व देखने की विचारधारा महावीर
1. देखें-हर्मन जेकोबी का जैन धर्म पर लेख-(ई. आर. ई) डा. सुरेन्द्रनाथ
दासगुप्ता के 'भारतीय दर्शन का इतिहास', भाग 1, पृ. 182 से साभार उद्धृतअनु. कलानाथ शास्त्री, (अहिंसा अथवा किसी भी जीव की 'किसी भी प्रकार हिंसा न हो पाए' इस सिद्धान्त को निभाने में पराकाष्टा की सतर्कता भिक्षुओं के जीवन में पूरी तरह, अपनी अंतिम हद तक, क्रियान्वित की जाती है। सामान्य जनजीवन को इसी ने बड़ी हद तक प्रभावित किया है। +++ किसी भी जीव की हिंसा न करने के इस सिद्धान्त ने उन्हें कृषि जैसे उद्योगों से हटाकर केवल वाणिज्य तक सीमित रख दिया है।")