________________
आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
295
प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक कहानियों में जैन मंत्रीवर्य अभयकुमार, सती मृगावती, महारानी चेलना, महावीर की प्रथमशिष्या चन्दनबाला, श्रेष्ठिकुमार शालिभद्र की कथा भी आगम प्रसिद्ध है। प्रस्ताविक में इन कथाओं के सम्बंध में लिखा गया है कि-'प्रस्तुत संग्रह में संकलित चावल के पाँच दाने, बिना बिचारे का फल, छोटों के काम, भिखारी का स्वप्न, चतुर सेवक आदि कथाएँ कुछ रूपान्तर के साथ सर्वसाधारण में प्रचलित हैं, जिनका किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बंध नहीं है। ये लोक कथाएँ भारतवर्ष में पंचतंत्र, हितोपदेश, कथा-सरित-सागर, शुक सप्तति, सिंहासन द्वात्रिंशिका, बैताल पंचपिशाचिका आदि ग्रंथों में पायी जाती हैं। बौद्धों के पालि साहित्य की तरह जैनों का प्राकृत साहित्य भी कथा-कहानियों का विपुल भण्डार है। बौद्ध भिक्षुओं की तरह जैन साधु भी अपने धर्म प्रचार के लिए दूर-दूर देशों में विहार करते थे। ये श्रमण परिभ्रमण करते हुए लोक कथाओं द्वारा लोगों को सदाचार का उपदेश देते थे, जिससे कथा-साहित्य की पर्याप्त अभिवृद्धि हुई है।"
इस संग्रह की सभी कहानियों शिक्षा प्रद एवं प्रभावोत्पादक होने के साथ साम्प्रदायिकता व संकुचितता से दूर है। इससे पता चलता है कि प्रत्येक धर्म मूल में कितना असाम्प्रदायिक होता है। लेकिन क्रमशः वह साम्प्रदायिकता के घेरे में बंध जाता है। इन आख्थानों में एक ओर रोचकता, जिज्ञासा है तो दूसरी ओर धार्मिक शिक्षा व सद्गुणों के विकास का सरल सन्देश। . आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-मेरे मित्र डा. जगदीश चन्द्र जैन एमपी-एच०डी० ने प्राचीन जैन साहित्य से चुनकर मनोरंजक कहानियाँ संग्रहित की हैं। यद्यपि ये कहानियाँ जैन परंपरा से ली गई हैं तथापि ये केवल जैन साहित्य तक ही सीमित नहीं हैं। ब्राह्मण और बौद्ध ग्रन्थों में भी ये कहानियाँ किसी न किसी रूप में मिल जाती हैं। सच तो यह है कि ये चिरन्तन भारतीय चित्त की उपज हैं। जैन साहित्य बहुत विशाल हैं। अधिकांश में यह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। ब्राह्मण और बौद्ध शास्त्रों की जितनी चर्चा हुई है, अभी उतनी चर्चा इस साहित्य की नहीं हुई है। बहुत थोडे ही पंडितों ने इस गहन साहित्य में प्रवेश करने का साहस किया है। डा० जगदीशचन्द्र जी ऐसे ही विद्वानों में से है। इन कहानियों को नाना स्थानों से संग्रह करने में उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ा होगा, वह सब ही समझा जा सकता है। संग्रहीत कहानियाँ बड़ी ही सहज पाठ्य हो गई हैं। इन कहानियों में 1. डा० जगदीशचन्द्र जैन : दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां, प्रस्तावना, पृ० 2, 3.