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________________ 274 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य होकर उपन्यास पढ़ना है कि हाथ में कहीं कथा का सूत्र छूट न जाए। धार्मिक, सामाजिक आचरण की महत्ता और आदर्श भारतीय नारी, के गुणों के साथ जैन धर्म के गूढ़ सिद्धान्तों का निरूपण लेखक ने कथा के माध्यम से कर दिया है। उपन्यास से सिद्धान्त-चर्चा के कारण थोड़ी-सी नीरसता आ गई है। साथ-हीसाथ बोझिल भी प्रतीत होता है, लेकिन लेखक अपने उद्देश्य में सफल रहते हैं। 13वें और 16वें अध्याय में तो पूर्णरूप से रत्नचन्द्र सेठ की साधु महाराज से धार्मिक चर्चा का निरूपण हुआ है। प्रत्येक अध्याय की कथावस्तु का प्रारंभ और अन्त प्रकृति-चित्रण से ही किया है। पात्र : ___पात्रों की संख्या विशेष होने पर भी उपन्यासकार ने प्रमुख पात्रों का चारित्रिक विश्लेषण सुन्दर शैली में किया है। पुरुष पात्रों में जयदेव, भूपसिंह, रत्नचन्द्र, हीरालाल, उदयसिंह आदि और बाकी पात्रों में सुशीला, रेवती, सुभद्रा और रामकुंबरी प्रधान हैं। इन पात्रों के चरित्र-विश्लेषण पर ही कथास्तंभ खड़ा किया गया है। ___ जयदेव उच्चकुलीन राजपुत्र है। बचपन से ही वह संयमी, अभ्यासी एवं सादगी से रहने वाला है। कष्ट विपत्ति में वह सुमेरू के समान दृढ़ और सहनशील है, जो उत्तरदायित्व निभाने में निष्कपट और सदाचारी है। अपनी पत्नी के प्रति अनुरक्त है तथा अन्य स्त्री के प्रति दृष्टि ऊँची कर देखता तक नहीं है। इसीलिए रामकुबंरी द्वारा अनेक प्रलोभनों के बावजूद वह फँसता नहीं है। समय आने पर जी तोड़कर श्रम करने में पीछे हटने वाला नहीं हैं। रत्नचन्द्र अपने नगर का प्रसिद्ध जौहरी है न्यायी और कर्तव्य परायण होने से नगर में उनका अच्छा सम्मान था। मनुष्य परखने की कला में भी वे उतने ही कुशल थे, जितना रत्न परखने की कला में। आदर्श और सदाचार को वह जीवन के लिए आवश्यक तत्त्व मानते हैं। इसीलिए दुश्चरित्र पत्नी व पुत्र का व्यवहार देखकर क्रोध भी आता है और अन्त में सच्ची विरक्ति आ जाने से सन्यस्त ग्रहण कर लेते हैं। अपने भावों और प्रतिक्रियाओं को दबाकर ज्ञान बुद्धि से सोचकर संसार के प्रति ही वैराग आ जाने से दीक्षा लेकर विमलकीर्ति नाम के मुनि हो गये। उसका पुत्र हीरालाल व्यसनी एवं दुराचारी और क्रूर प्रकृति का है। वह अपनी पत्नी व बच्चे के प्रति सद्व्यवहार से रहने के बदले अपरमाता के साथ व्यभिचार करता है। निर्लज्जता एवं कामुकता उसके भीतर भरी पड़ी है, जिसका दुष्परिणाम भी उसे भुगतना पड़ता है। जयदेव का परिचयात्मक चरित्र-चित्रण करते हुए उपन्यासकार ने लिखा है-जयदेव जन्म से ही दयालु हृदय एवं शान्ति प्रकृति का व्यक्ति है। विजयपुर
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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