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________________ 272 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य देते हैं। उदय सिंह नामक अन्य राजकुमार को यह विवाह अच्छा नहीं लगता, क्योंकि उस कामुक लोभी पुरुष की निगाह रूप लावण्यवाती सुशीला पर पहले से मण्डरा रही थी। अतः वह कैसे भी हो उसे प्राप्त करने के लिए प्रपंच-युक्तियाँ लड़ाता है। जयदेव के विनाश के लिए षडयंत्र रचाता है, ताकि बाद में उसे सुशीला प्राप्त हो सके लेकिन सुशीला तो धर्मवान्, शीलवान्, सतीत्व को जानने वाली दृढ़-निश्चयी स्त्री होने से कभी अपने व्रत-नियम से डिगती नहीं। विवाह के बाद दोनों जब विदा होते हैं तो मार्ग में लुक-छिपकर उदय सिंह ने साथ पकड़कर जल मार्ग से जाने की सलाह देकर अपनी कुयोजना का प्रारंभ करता हैं। जब समुद्र के शीतल झोंकों से जयदेव, उनके मित्र व सुशीला सभी को नींद आ गई तो उदय सिंह और बलवन्त सिंह दुष्ट मित्रों के मल्लाह से घुल मिलकर खूब बातें की और नौका को धोखा देकर बीच में ही डुबा दी। नाव में जयदेव का परम मित्र भूपसिंह और सुशीला की दो-तीन सखियाँ भी थीं। नौका को डुबा देने पर जयदेव भाग्यवश एक तख्त को पकडकर डूबते उतराते किनारे लगा और कंचनपुर नामक नगरी में पहुँचा। उसकी दशा और भीतरी तेजस्विता, योग्यता को पहचानकर वहाँ के प्रसिद्ध जौहरी रत्नचन्द्र से उसे आश्रय दिया। जयदेव रत्न-परीक्षण में अत्यन्त निपुण था, अतः रत्नचन्द्र जयदेव से प्रसन्न रहने लगे। रत्नचन्द्र की पत्नी रामकुंबरी और उसकी प्रथम पत्नी के पुत्र हीरालाल के बीच अनैतिक सम्बंध था। दोनों कामुक और दुराचारी थे। पहले तो रामकुबरी ने जयदेव को फँसाने के लिए भी नाना प्रकार से मायाजाल फैलाई, पर शील-संयमी जयदेव के सामने सब व्यर्थ रहा। जयदेव ने सेठजी को इस सम्बंध में बताया भी था। एक दिन रत्नचन्द्र अपने कार्यवश स्नेहपुर गए लेकिन पत्नी के चरित्र पर संदेह होने से मार्ग में से ही लौट आए और आधी रात घर पहुंचे। यहाँ आकर रामकुंबरी और हीरालाल के कुकृत्य को देखकर क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गईं और क्रोध में ही दोनों पापियों को रंगे हाथ पकड़कर सजा देने की तीव्र इच्छा हुई, लेकिन तत्क्षण विराग और उदासीनता आ जाने से पत्र लिखकर संपूर्ण संपत्ति की व्यवस्था का भार जयदेव के हाथ में सौंपकर वे मुक्ति के पथ पर अग्रसर होने के लिए चल पड़ते हैं। सुबह जयदेव यह सब देख कर अवाक् रह गया। बाहर से किवाड़ बन्द कर दिया गया होने से दोनों दुराचारियों का पाप प्रकट हो गया। जयदेव दोनों को खूब सुनाता है, उपदेश देता है लेकिन कामी लोगों को लज्जा कहाँ? जयदेव
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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