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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 267 संयोग कराने में समर्थ है। प्रारंभिक युग की कृति होने के कारण उपन्यास के तत्त्वों की कमी एवं रचना कौशल न होने पर भी घटना-प्रवाह के कारण रोचकता व उत्सुकता बनी रहती है। कर्मों की मीमांसा के कारण सुकुमाल-प्रमुख नायक-के जन्म-पूर्वजन्म को महत्त्व दिया गया है। अतएव, कथा के भीतर कथा का प्रवाह चलता है, क्योंकि दार्शनिक ग्रंथ और उपन्यास दो भिन्न-भिन्न साहित्य हैं। जैन धर्मों के पाँच महाव्रतों की महत्ता व श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु पाँच मुख्य कथा नागश्री, नागशर्मा और आचार्य सूर्यमित्र के द्वारा बताई गई हैं। साधारण भाषा शैली का यह उपन्यास अपने युगीन संदर्भ में महत्त्व रखता है। वैसे आधुनिक रचना शैली, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण या मार्मिक कथोपकथादि का अभाव है। कथानक : मुख्य कथानक नागश्री एवं सुकुमाल का है। नागश्री सुर्यमित्र मुनि से ज्ञान प्राप्त कर विद्वान् बन जाती है और उसके ज्ञान की कसौटी राजा चन्द्रवाहन, नागश्री के राजपुरोहित पिता, दरबारियों और प्रजाजनों के समक्ष ली जाती है। नागश्री सबके सामने धर्म के गूढ़ तत्त्वों की चर्चा करती है। उसके गुरु सूर्यमित्र नागश्री के पूर्वभव की कथा कहते हैं, जो पिछले जन्म में उनका सुयोग्य शिष्य वायुभूत था। फिर वायुभूत के जन्म की कथा प्रारंभ करते हैं कि वायुभूत मगध के राजा अतिबल के पुरोहित सोम शर्मा का छोटा बेटा था, जो पढ़ने से दूर ही रहता था। पिता के अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी अशुभ कर्मों के उदय स्वरूप विद्याभ्यास में उसे रुचि भी नहीं उत्पन्न होती थी। पिता की मौत के बाद अज्ञानवश दोनों भाइयों को-अग्निभूत और वायुभूत को-राजपुरोहित बना दिया, लेकिन एक बार विद्वान् प्रतिद्वन्द्वी से वाद-विवाद या चर्चा करने की अपेक्षा प्रश्नों के कागज़ को फाड़ दिया। अतः राजा ने गुस्से में आकर नगर से बाहर कर दिया। पश्चाताप स्वरूप दोनों भाई अपनी माता से परामर्श कर राजगृह के पुरोहित-अपने मामा सूर्यमित्र के-पास विद्याध्ययन के हेतु जाते हैं। सूर्यमित्र मुनि अपने पूर्व भव में राजपुरोहित थे, लेकिन राजा की अंगूठी खो जाने के बाद किसी सुधर्माचार्य नामक जैन मुनि के ज्ञान से प्रभावित होकर तब उनसे भविष्य जानने की विद्या सीखने के लिए ठगाई करके जाते हैं। लेकिन सम्यक ज्ञान को जानने के बाद अज्ञान दूर हो जाने से सुधर्माचार्य से दीक्षा अंगीकार करते हैं। सूर्यमित्र के पास आने के बाद ये दोनों मूर्ख भाई पढ़-लिखकर विद्वान् बनते हैं, लेकिन बड़ा भाई अग्निमित्र शांत व विद्वान् है, जबकि अनुज वायुभूत क्रोधी और अविवेकी है। 1. श्री जैनेन्द्र किशोर-'सुकुमाल' उपन्यास का उपोद्घात, पृ० 1.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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