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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य यज्ञों का उस समय जो जटिल रूप और बाह्याचार में परिवर्तन हो गया था उस पर भी माल- वणियाजी ने विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है। डा. हरीश शुक्ल की भी उस संदर्भ में यही विचारधारा है। उस समय न केवल महावीर-बुद्ध ने धार्मिक विचारों द्वारा जन-क्रांति प्रारम्भ कर दी; बल्कि उत्साही एवं विचारशील हिन्दुओं ने भी जटिल कर्म-काण्डों से दूर जाने का साहस किया। स्वयं महावीर के प्रथम पशिष्य गौतम स्वामी विद्वान ब्राह्मण थे और उन्होंने अपनी शंकाओं के समाधान प्रभु महावीर से प्राप्त कर अपने 500 शिष्यों के साथ जैन दीक्षा अंगीकार की थी। अन्य भी 11 विद्वान पंडितों ने अपने-अपने समुदायों के साथ जैन धर्म की महत्ता स्वीकार कर दीक्षा ग्रहण की थी। महावीर ने दीक्षा लेने के अनन्तर 12 वर्षों के भ्रमण काल में देखा कि ब्राह्मणों ने यज्ञों में निर्दोष पशुओं की बलि दे देने की प्रथा अपनाकर समाज में हिंसा का वातावरण फैलाया है। अतः निरर्थक जीव-हिंसा की ओर लोगों का ध्यान खींचते हुए उन्होंने अहिंसा प्रधान जैन धर्म का महत्त्व प्रतिपादित किया। जैन धर्म अहिंसा एवं बृहत् मानवतावादी विचारधारा का संदेश देने लगा। ब्राह्मण धर्म उस समय छुआछूत और जाति प्रथा की महत्ता पर बल दे रहा था। महावीर के समय की सामाजिक स्थिति भी अत्यन्त असमानतापूर्ण थी। ब्राह्मण वर्ग को सत्ता मान और विशेषाधिकार प्राप्त थे, जबकि निम्न जाति के लोग प्रायः गुलाम और पशु तुल्य समझे जाते थे। नारी की दशा भी प्राचीन वैदिक धर्म के समय की गौरवपूर्ण और आभामय न होकर चार दीवारों में बँद कैदी-सी हो गई थी। उन्हें किसी भी प्रकार के अधिकार प्राप्त न थे। धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में ही जब नारी को महत्व नहीं दिया जाता हो, तब राजनैतिक या आर्थिक क्षेत्र में नारी के अधिकारों की तो संभावना ही कहां? पाश्चात्य विद्वान टीले का कहना है कि-'उस समय की सामाजिक व्यवस्था में स्त्री को कुछ स्थान नहीं था और शूद्रों को बिलकुल तुच्छ माना जाता था। मनु के अपने सूत्र 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। के बावजूद भी ब्राह्मण धर्म ने नारी को धार्मिक अधिकारों से वंचित रखा था और शूद्रों की भी वैसी ही स्थिति थी।" इसके विपरीत श्रमण-संस्कृति ने नारी और शूद्रों को भी ऊँचा उठाकर विशेष स्थान देने का प्रयत्न किया। नूतन विचारधारा के कारण महावीर 1. द्रष्टव्य-डा. दलसुख मालवणिया-'जैन धर्म चिन्तन'-अध्याय-1, हिन्दू धर्म और जैन धर्म, पृ. 80. 2. देखिए-डा. हरीश शुक्ल : 'जैन गुर्जर कपियों की हिन्दी कविता', पृ० 35. 3. S. Tille-'Principal or Religions', chap. V, Page. 165.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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