SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 246 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य के भक्त कवि भी हुए। जिनकी कृतियाँ आज भी जैन समाज में धार्मिक प्रसंगों पर गाई जाती हैं। राजस्थान के प्रसिद्ध मुनि नेमिचन्द्र जी के भाववाही सुन्दर धार्मिक भजनों का संग्रह 'नेमवाणी' इसी काल की रचना है। आधुनिक जैन काव्य रचनाओं के सर्जन में मुनि आचार्यों का भी कम योगदान नहीं हैं। 'नेमवाणी' के स्तवनों के अंत में छोटी-छोटी शिक्षा प्रद कथा भी रखी गई हैं। कवि के पदों पर राजस्थानी भाषा का प्रभाव स्वाभाविक रूप से लक्षित होता है, गुजराती भाषा का प्रभाव भी दिखाया है-तीर्थंकरों के वर्ण के विषय में उनका पद देखिए ___ पदप्रभु वासुपूज्य दोऊ राते सोमे सोय।। 1।। चन्द्र प्रभु ने सुविधिनाथ उज्जलवणे जिन विख्यात।। 2।। मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ नीले वर्णे जोड़ हाथ मुनि सुब्रत के नेमिनाथ अंजन वर्णों दो साख्यात।। 4।। सोले कंचन वर्णों जात चौबीस जिन प्रणभुं प्रभात।। 5।। नेम मने पुनम परगाद, उदयापुर जिन बिना याद।। 6।। (नेम्मवाणी पृ. 19) श्रीपाल चरित्र : कवि परिमलजी ने संवत् 1951 में इसकी रचना गद्य-पद्य में की थी। और प्रकाशित नहीं करवाया था। हस्तप्रत को शुद्ध करके बाबू ज्ञानचंद्रजी ने सं० 1908 में प्रकाशित किया था। लेकिन यह प्रति भी खो गई थी। अतः सुविधा के लिए दीपचंद जी के पास सरल हिन्दी में गद्यानुवाद करवाया गया था। प्रारंभ में कवि ने तीर्थंकर और गुरु की वंदना की है। जैन साहित्य में श्रीपाल राना और मैना सुन्दरी की कथा अत्यंत प्रसिद्ध है। स्वकर्मों के अनुसार ही सुख-दुःख पाने की नियति निश्चित है। इस कथा में राजा श्रीपाल व रानी मैना स्वकर्मों के कारण अनेक कष्ट, रोग आदि पाते हैं और कर्मों की धर्म, व्रत, तपस्या, आदि से द्वारा निर्जरा सुख साम्राज्य आते हैं, लेकिन तभी ज्ञान नेत्र खुल जाने से संसार की असारता व निरर्थकता देखकर संसार त्याग करते हैं। मुनि श्री विजय ने भी दोहा चौपाई' में श्रीपाल राजा का 'रास' नामक काव्य की रचना की है। जिसमें उपर्युक्त प्रसिद्ध कथावस्तु को दोहा-चौपाई शैली में काव्यबद्ध किया है। काव्य में वर्णनात्कता विशेष है, साहित्यकता कम। भाषा शैली पर गुजारती भाषा का प्रभाव विशेष लक्षित होता है। सुबोध कुसुमांजलि : मुनि ज्ञानचन्द्र जी के सुन्दर भाववादी स्तवनों का संकलन है। जिसमें 1. भावनगर के 'यज्ञोविजय ग्रन्थ भंडारे' के अन्तर्गत इस रचना का विवरण प्राप्त हआ था। 2. वही।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy