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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन 237 उर्दू के शब्दों का क्वचित प्रयोग किया है। भगवत जी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे, अतः उन्होंने विपुल साहित्य-सृजन के द्वारा हिन्दी जैन साहित्य के साथ हिन्दी साहित्य की भी काफी सेवा की है। आधुनिक जैन साहित्यकारों में उनका महत्वपूर्ण स्थान कहा जायेगा। मुक्तक : ___ मुक्तक काव्य की विशेषताओं की संक्षिप्त रूप से चर्चा हम कर चुके हैं। आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में मुक्तक काव्यों की दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ दृष्टिगत होती हैं। एक प्राचीन परिपाटी पर लिखी गई कविताएँ, जिनमें किसी आचार, विचार या किसी सिद्धान्त का प्राचीन ढंग पर वर्णन किया गया है। ऐसे काव्यों की भाषा-शैली भी पुराने ढंग की होना स्वाभाविक है। हृदय की भावना की अभिव्यक्ति तो अवश्य होती है, लेकिन रूप को संवारा नहीं गया होता। इस प्रकार के मुक्तक काव्यों में दार्शनिक अभिव्यक्ति की विपुलता के कारण भावों का सहज उन्मेष अत्यन्त कम हो पाया है। प्राचीन पद्धति पर काव्य-रचना करने वाले प्रथम कवि आरे निवासी बाबू जगमोहन हैं। जिनका 'धर्मरत्नोद्योत' नामक छोटी-छोटी कविताओं का एक ग्रंथ प्रकाशित है। इनकी कविता साधारण है, पर भक्ति-भावना पूर्ण है। अतः कविता बोझिल या नीरस नहीं प्रतीत होती। पुराने ढंग के कवियों की रचनाएँ आज अनुपलब्ध हैं, लेकिन डॉ. नेमिचन्द्र ने अपने परिशीलन में इनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है। रचनाएँ तो उनको भी प्राप्त नहीं हुई हैं। मुक्तक काव्य रचना के अंतर्गत शास्त्री जी ने प्रवृत्ति गत परिचय ही दिया है। बाबू जैनेन्द्र किशोर ने भजन, नवरत्न, श्रावकाचार, वचन-बतीसी आदि कविताएँ लिखी हैं। इसके उपरान्त आपने समस्या पूर्ति भी की है, जिस पर रीति-युग की स्पष्ट छाप है। आपके नख-शिख वर्णन में भी कुछ रोचक और मधुर उपलब्ध है। इसी प्रकार झालण पाटन निवासी श्री लक्ष्मीबाई तथा मास्टर नन्दुराम ने प्राचीन परिपाटी पर कविताएँ लिखी हैं जो आज अनुपलब्ध हैं। वैसे उनकी कविताओं में आचारात्मक और नैतिक कर्त्तव्य का विश्लेषण सुन्दर ढंग से किया गया है। सप्त व्यसन की बुराइयों के वर्णन के साथ दर्शन और आचार की गूढ बातों का कवि ने सरस व सरल शैली में वर्णन किया है। दार्शनिक पृष्ठभूमि से सम्बंधित विषयों पर कविताएँ लिखने पर भी रोचक शैली के कारण ये कविताएँ ग्राह्य बन पड़ी हैं।' श्रीमति रमारानी जैन ने आधुनिक युग के जैन कवियों की कविताओं का 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, द्वितीय भाग, पृ० 34.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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