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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य के जैन भी ऐसे ही पूजते हैं। कोलब्रक के अतिरिक्त प्रसिद्ध जर्मन जैन तत्ववेता हर्मन याकोबी, श्रीमती स्टीवन्सन, एडवर्ड थोमस भी निश्चयपूर्वक मानते हैं कि जैन धर्म 'नातपुत्र' (पार्श्वनाथ) और 'शाक्यपुत्र' (महावीर) से भी प्राचीन है। बौद्ध-साहित्य में पार्श्वनाथ के चतुर्याम धर्म के उल्लेख मिलते हैं। स्वयं भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में पार्श्वनाथ के लिए अनेक बार 'पुरुष दाणीयम्' (पुरुषदानी) विशेषण का प्रयोग किया है। वे महावीर से 300 वर्ष पूर्व अर्थात् ई० पू० की 8वीं शताब्दी में हुए थे और 100 वर्ष की आयु भोगी थी। महावीर के माता-पिता उन्हीं को पूजते थे। इस धर्म की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए डा. ज्योति प्रसाद जैन लिखते हैं कि-'वैदिक धर्म के कुछ प्राचीन ग्रंथों से भी सिद्ध होता है कि उस समय जैन धर्म अस्तित्व में था। रामायण और महाभारत में भी जैन धर्म का उल्लेख हुआ है। जैन धर्मानुसार बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रतस्वामी के समय में रामचन्द्र जी का होना सिद्ध है। इसी प्रकार प्रो. जयचन्द्र विद्यालंकार भी जैन धर्म की प्राचीनता के संदर्भ में अपना विश्वास प्रकट करते हुए लिखते हैं कि-'जैनों की मान्यता है कि उनका धर्म बहुत प्राचीन है और भगवान महावीर के पहले 23 तीर्थंकर हुए हैं। इस मान्यता में तथ्य हैं। ये तीर्थंकर अनैतिहासिक व्यक्ति नहीं हैं। भारत का प्राचीन इतिहास उतना ही जैन है, जितना वैदिक। भगवान महावीर के प्रादुर्भाव ने प्राचीन और विशृंखलित जैन धर्म को एक नये वातावरण में सुदृढ़ता एवं व्यवहारिक स्वरूप देकर नया प्रकाश प्रदान किया। नयी चेतना जगाकर जैन धर्म में प्राण फूंक दिया तथा इस धर्म के सात्त्विक व लोकोपयोगी सिद्धान्तों से अपने समय के रूढ़िग्रस्त समाज को अहिंसक परिवर्तन की नयी भूमिका से सुसज्ज किया। उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ-प्रचारित चार प्रमुख तत्त्वों की संख्या पांच करके (सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य) उनका सामान्य जनता में प्रचार किया। जैन धर्म में स्त्री-पुरुष दोनों को दीक्षित करने की परंपरा प्रारंभ कर अनुयायियों का वर्ग निर्मित किया और जैन समाज को चतुर्विध संघ में (साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका) विभाजित किया। उनके अथक प्रयास से जैन धर्म पुन:जीवित होकर युगानुकूल धार्मिक तथा सामाजिक क्रांति का वाहक बनने में समर्थ हो सका। 1. Colebrook-opardioc-cit, page. 341. 2. श्री ज्योति प्रसाद जैनः महावीर जयन्ति स्मारिका-पृ०13, राजस्थान जैन सभा-जयपुर। 3. देखिए-प्रो जयचन्द विद्यालंकार-भारतीय इतिहास की रूपरेखा-भाग 1, पृ.343 वल्लसुख मालवाणिया-जैन धर्म।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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