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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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+ + + + + + + कब नारी अपने खोये सत्य को प्राप्त करेगी?
कब वह निज जीवन-पुस्तक का नव अध्याय रचेगी। महावीर के अन्तर्द्वन्द्व को व्यक्त करते हुए कवि लिखते हैं
जिस किसी भाँति थे रहते, उर में यह आग छिपाये प्रायः विचरते रहतेथे नीचे नयन गड़ाये॥ इस चिर अशांति का जग से, किस दिन विलोम यह होगा? निर्दोष मूक इन पशुओं
को अभय प्राप्त कब होगा? किस दिन इन बधिरों की यह शोणित की प्यास बुझेगी? कब इनके क्रूर मुखों पर, करुणा की कान्ति दिखेगी? 3-42
तत्कालीन सामाजिक स्थिति के साथ धार्मिक व राजकीय स्थिति की विषमता से भी वे चिन्तित हैं। कवि ने कुमार वर्धमान के मुख से उस समय की परिस्थिति का संक्षिप्त चित्रण करवाया है, जिससे प्रतीत होता है कि कवि स्थितियों से काफी प्रभावित है। वर्धमान सामाजिक असमानता को देख दुखी रहते हैं
पूंजीपति इनके आश्रित, रह सुख की निद्रा सोते। परश्रामिक कृषक गण जीवन, भर दुःख की गठरी ढोते। बिकता है न्याय यहाँ ही, एवं व्यभिचार पनपते।
अपराधी दण्ड न पाये, कारा में सन्त तड़पते। 4-55 अतः वर्धमान अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं
अहिंसा पर विजय करूँगा, मैं शस्त्र अहिंसा का ले।
पाप के प्रति घृणा लेकिन पापी के प्रति करुणा एवं उसके उद्धार की सद्भावना वर्धमान में पूर्णरूप से निहित है। वे सोचते हैं
दुष्पाप अवश्य घृणित है, पर नहीं है पापी। यदि सद् व्यवहार करे वह बन सकता पुन्य प्रतापी॥ धर्म गुरुओं के बाह्याडम्बर से वर्धमान भीतर ही भीतर सुलग उठते हैं