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________________ 176 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य 'वर्द्धमान' में कवि अनूप जी ने स्थान-स्थान पर प्रकृति का कहीं उद्दीपन रूप में तो कहीं आलम्बन रूप में वर्णन किया है। उन्होंने परम्परागत प्रकृति - वर्णन को अनुभूति की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है, फिर यह अनुभूति प्रेम की हो, सौंदर्य की हो, वैराग्य की हो या चिन्तन-मनन-प्रेरणागत हो। परिणामस्वरूप कथा की कलात्मकता ही नहीं वरन् उसकी प्रभावोत्पादकता तथा मार्मिकता भी बढ़ जाती है। आलम्बन रूप में प्रकृति : ___ 'वर्धमान' में प्रकृति नाना रूपों में बिम्बित होती है। यत्र-तत्र सर्वत्र प्रकृति दृश्यमान होती है। प्रारंभ के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय सर्ग में प्रकृति एवं विविध वस्तु वर्णनों के लिए कवि को काफी अवकाश मिलता है। चौथे सर्ग में नव-प्रभात एवं उषा के वर्णन में कवि की कुशलता द्रष्टव्य है। प्रकृति कहीं मुक्त रूप में विहरती मानव जीवन को उच्च आनंद अर्पित करती है, तो वहीं कुमार वर्धमान की वैराग्य भावना को उद्दीप्त करने में सहायता करती है। 'वर्धमान' महाकाव्य का प्रारंभ ही संकेत कर देता है कि कवि प्रकृति-प्रेमी है। क्योंकि कवि ने इसका प्रारम्भ नमस्कार-क्रिया और कथावस्तु-निर्देश से न कर भारत-भूमि की महत्ता अंकित करके किया है। कवि भारत की प्रकृति का गौरव-गान कर उठते हैं समुच्च-आदर्श-विधायिनी मही, प्रसिद्ध है भारत सर्व विश्व में, यहां महा-मंत्र-मयी प्रभा लिए सुधर्म साम्राज्य सदैव सोहता। जहां मही का दृढ़ मेरु-दंड-सा समुच्च प्रालेय-गिरीन्द्र राजता, महीध्र कैलाश विशाल मुंड-सा, किरीट-सा मेरु विराजता जहां। सु-केश-सी कानन-श्रेणियां जहां, प्रलंब-माला-मयि-अर्क-जान्हुजा, कटिस्थ विन्धयाद्रि नितम्ब देश-सा, लमा पद-क्षालन-शील सिंघु है।' आलंबन रूप में प्रकृति का मोहक रूप 'वर्धमान' के प्रारंभिक सर्गों में दृष्टिगत होता है। सूर्योदय व प्रभात का मनोहारी वर्णन देखिए1. अनूप शर्मा-'वर्द्धमान', पृ॰ 37-9, 10, 11.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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